देहरादून : उत्तराखण्ड में फरवरी के आखिरी सप्ताह से मौसम में धीरे धीरे अब बदलाव देखने को मिल रहा है तो गर्मियों में पहाड़ के धधकते जंगलों की आग भी एक बड़ी चिंता की वजह हो जाती है। लिहाज़ा जंगलों को आग से बचाने के लिए शंका आशंका के बादल घिरने लगे है. पिछले 10 सालों में जंगलों में आग की घटनाओं पर आ पधारित हमारी ये रिपोर्ट देखिए..
बदलते वक्त के साथ अब उत्तराखण्ड में भी मौसम में बदलाव नज़र आने लगा है. करीब आते गर्मियों के मौसम के मद्देनज़र जंगलों में लगने वाली आग की घटनाओं को लेकर आशंकाएं भी बढ़ने लगी है. लिहाज़ा पहले ही वन विभाग के माथे पर चिंताएं की लकीरें भी साफ दिखने लगी है. ये लाज़मी इसलिए भी है कि साल दर साल उत्तराखण्ड के जंगलों में बढ़ती आग की घटनाओं पर काबू पाने के लिए विभागीय इंतज़ाम भी नाकाफी साबित हो रहे हैं. पिछले 10 सालों के दौरान जंगलों में वनाग्नि की घटनाओं के आंकड़ों की तस्वीरें देखी जाए तो कुल 2 हज़ार 094 वन बीट में से 1 हज़ार 360 संवेदनशील श्रेणी में हैं. इनमें 115 अति संवेदनशील, 972 मध्यम संवेदनशील और 273 संवेदनशील हैं।
हालांकि विभागीय तौर पर साल दर साल जंगलों में लगने वाली घटनाओं पर काबू पाने के दावे तो खूब होते है लेकिन इन दावों में धरातल पर कोई दम नहीं दिखता.. मगर इस बार विभागीय अधिकारी इस बात का भरोसा दिलाते दिख रहे हैं कि पिछले सालों में जंगलों में लगी आग की घटनाओं से सबक लेते हुए इस बार विभाग ने जंगल की आग को देखते हुए बीट स्तर के हालातों का अध्ययन किया है. बस देखना है कि इस अध्ययन के आधार पर इस बार वनाग्नि से निपटने के दावों पर विभागीय अधिकारी कितने खरे उतरते हैं।