डेस्क- बगल में छुरी और मुंह में राम राम वाली कहावत उत्तराखंड में गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने के मसले पर चरितार्थ हो रही है। दरअसल सियासत का ये हाल है कि पॉवर में रहने वाले हर पॉवरफुल शख्स मुंह से गैरसैंण की वकालत कर रहे हैं लेकिन असलियत में उनके दिल देहरादून के लिए धड़क रहा है।
पिछले दिनों बीसीसीआई को खेलमंत्री अरविंद पांडे के भेजे खत ने इस बात का खुलासा भी कर दिया है कि सत्रह सालों से अस्थाई राजधानी के कांधे पर सवार सरकार और उसकी सूट-बूट वाली मशीनरी की मंशा क्या है।उसे न तो उत्तराखंड के भूगोल की परवाह है न उसे तकलीफों में जीती पहाड़ की जनता की जनता की और ना ही उन जनभावनाओँ के ज्वार से कोई सरोकार जिसकी वजह से आज उत्तराखंड है और उनका सियासी वजूद जिंदा है।
बहरहाल वामपंथी दिग्गज युवा नेता और राज्य आंदोलनकारी इंद्रेश मैखुरी ने सोशल मीडिया के प्लेट फार्म पर सूबे के खेल मंत्री अरविंद पांडे के बीसीसीआई को भेजे खत के जरिए गैरसैंण के मुद्दे पर सरकारी मंशा को बेपर्दा किया है। आप भी पढ़िए इंद्रेश मैखुरी की फेसबुक वॉल का अपडेट –
“उत्तराखंड की भाजपा सरकार का उत्तराखंड की स्थायी राजधानी के मामले में रवैया-मुंह में गैरसैंण, दिल में देहरादून वाला प्रतीत होता है.इस बात की तस्दीक, एक हालिया पत्र से होती है,जो सूबे के खेल मंत्री अरविंद पांडेय ने भारतीय क्रिकेटर कंट्रोल बोर्ड(बी.सी.सी.आई.) के प्रशासकों की कमेटी के अध्यक्ष विनोद राय को लिखा है.अंग्रेजी में लिखे उक्त पत्र में देहरादून का जिक्र करते हुए उसे-“the proposed capital of uttarakhand” कहा गया है.
यदि खेल मंत्री ने अपने पत्र में देहरादून को प्रस्तावित राजधानी कहा है तो उन्हें बताना चाहिए कि देहरादून को राजधानी बनाने का प्रस्ताव किसने किया,कहाँ किया और कब किया?विधानसभा का शीतकालीन सत्र,दिसम्बर में जब गैरसैंण में आयोजित हो रहा था तो उस वक्त गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने के सवाल पर संसदीय मंत्री प्रकाश पन्त ने कहा था कि गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने का कोई प्रस्ताव सरकार के पास नहीं है.अब एक अन्य मंत्री देहरादून को प्रस्तावित राजधानी बता रहे हैं तो यह तो सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि यह प्रस्ताव कहाँ से आया है.
अब तक जितनी वैधानिक कार्यवाही सार्वजनिक हुई है,उसके हिसाब से देहरादून को राजधानी के रूप में प्रस्तावित किये जाने की कोई जानकारी नहीं है. जब उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड के अलग होने की प्रक्रिया शुरू हुई तो उस प्रक्रिया में संसद में पारित उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम,2000 में स्थायी राजधानी का कोई जिक्र नहीं था।
केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा 5 अक्तूबर 2000 को D.O. No.12012/22/2000 के द्वारा उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को सूचित किया गया कि जब तक स्थायी राजधानी का निर्णय नहीं हो जाता, तब तक देहरादून अस्थायी राजधानी रहेगी.इससे साफ है कि राज्य बनने के समय ही देहरादून वैधानिक रूप से अस्थायी राजधानी है.अगर मंत्री इसे प्रस्तावित राजधानी बता रहे हैं तो वे न केवल जनभावनाओं का निरादर कर रहे हैं,बल्कि वैधानिकेत्तर बात भी कर रहे हैं।
गैरसैंण को उत्तराखंड की स्थायी राजधानी बनाने को लेकर प्रदेश में पुनः आंदोलन खड़ा हो रहा है.ऐसे में मुख्यमंत्री और एक अन्य मंत्री उत्तर प्रदेश के इलाकों को उत्तराखंड में मिलाने का शिगूफा छेड़ते हैं.फिर खेल मंत्री देहरादून को प्रस्तावित राजधानी बताते हैं.क्या बयानों और पत्र लिखने की यह श्रृंखला महज इत्तेफाक है या इसके मूल में छुपा हुई कोई मन्तव्य है?अरविंद पांडेय तो वही मंत्री हैं,जिन्होंने दिसम्बर महीने में गैरसैंण राजधानी के सवाल पर अनशनरत आंदोलनकारियों को देहरादून के दून अस्पताल में जूस पिलाते हुए गैरसैंण को राजधानी बनाये जाने के पक्ष में बयान दिया था.अब दो महीनों में ऐसा क्या हो गया कि पांडेय साहब देहरादून को प्रस्तावित राजधानी बताने लगे?
यह पूरा घटनाक्रम इस बात को दर्शाता है कि गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने के लड़ाई बहुत सीधी,सरल नहीं है.इस लड़ाई को और उत्तराखंड के पलायान,बेरोजगारी, स्वास्थ्य सुविधा की बदहाली,जल-जंगल-जमीन पर आम जनता के अधिकार जैसे तमाम सवालों को बेहद मजबूती, वैचारिक स्पष्टता और दोस्तों-दुश्मनों की साफ-साफ शिनाख़्त करते हुए लड़ने की जरूरत है। “
(इंद्रेश मैखुरी की फेसबुक वॉल से साभार)