धनोल्टी(सुनील सजवाण)- जब मैदानों के शहरों में गर्म लू से त्रस्त होकर सैलानी उत्तराखंड के पहाड़ों का रुख करते हैं तो अल्मोड़ा, मुनस्यारी, चोपता, खरसाली, मसूरी, नई टिहरी प्रतापनगर और धनोल्टी जैसे सैकड़ों पहाड़ी हिल स्टेश्नों की आबोहवा सैलानियों के जलते बदन पर महरम लगाती है। लेकिन अफसोसजनक बात ये है कि स्वच्छ भारत अभियान चलने के दो साल बाद भी छोटे हिलस्टेशनों में गंदगी के अंबार को कम करने का कोई इंतजाम नहीं हुआ है।
इन्ही हिल स्टेशनों में एक है धनोल्टी। सैलानियों के दिलों में जगह बना चुकी धनोल्टी जब अपने बदन बदबू से बजबजाते कचरे के ढेरों को देखती है तो रो उठती है। हालांकि उसके इन आसूंओं को जिला पंचायत नहीं देख पाता। जबकि धनोल्टी के बड़े होटलों से बीस हजार रुपए और छोटे होटलों से पांच हजार रूपए जिला पंचायत सालान वसूल करता है।
बावजूद इसके धनोल्टी के दामन पर जगह-जगह पॉलीथीन युक्त कचरे के बड़े-बड़े दाग आसानी से दिख जाते हैं। जिला पंचायत अपनी सालाना वसूली करता है लेकिन इसके बदले धनोल्टी को साफ-सुथरा बनाने का कोई इंतजाम नहीं करता। जिससे स्थानीय करोबारी जिला पंचायत से बेहद नाराज हैं।
कारोबारी तल्ख अंदाज में कहते हैं अगर जिला पंचायत धनोल्टी को साफ-सुथरा नहीं रख सकती तो उसे वसूली का कोई अधिकार नहीं है। ये पैसा ग्राम पंचायत को दिया जाए और पंचायत अपनी धनोल्टी को फिर साफ-सुथरा बनाने का इंतजाम खुद करती है।
देवदार, बुरांश और काफल के दरख्तों को अपने दमन से लिपटाए धनोल्टी की हरियाली को जगह –जगह पड़े कचरे के ढेर निगल रहे हैं। कारोबारी कहते हैं सड़ते कचरे से उठती बदबू और बिखरा हुआ ठोस कूड़ा धनोल्टी के मेजबान और मेहमान दोनों के लिए जी का जंजाल बन गया है। अगर यही आलम रहा तो नाक-भौं सिकोड़ते मेहमान धनोल्टी के नाम से तौबा कर लेंगे।
लिहाजा जरूरत है समय पर कचरे के सही प्रबंधन की ताकि धनोल्टी के हुश्न का जलवा कायम रहे। वैसे भी राज्य के कई युवा सेनेटरी इंस्पेंक्टर की ट्रैनिंग लेकर बेरोजगार घूम रहे हैं।