ब्यूरो- मैदान-ए-जंग में गिरते हैं सहसवार वो क्या गिरंगे जो घुटनों के बल चलते हैं। ये कहावत उन दिग्गजों पर तो सटीक बैठती है जो चुनावी जंग में बगावत कर खुद चुनावी रण में उतरते हैं लेकिन उन पर नहीं जिन्हें जबरदस्ती रण धकेला जाता है। सहसपुर विधानसभा क्षेत्र भी पीसीसी चीफ किशोर उपाध्याय के लिए भी ऐसा ही चुनावी रण माना जा रहा है।
सूत्रों की माने तो किशोर ऋषिकेश से आगे आने को तैयार ही नहीं थे लेकिन उन्हें जबरन सहसपुर धकेल दिया गया। उन्हें भरोंसा दिलाया गया कि पार्टी संगठन उनके लिए तन-मन-धन से काम करेगा। लेकिन हकीकत ये है कि मतदान के बाद ही पहली कार्यवाई सहसपुर में हुई जहां कांग्रेस ने 31 विभीषणों पर एक्शन लेते हुए सभी की प्राथमिक सदस्यता रद्द करते हुए 6 साल के लिए पार्टी के दरवाजे से गेट ऑउट कर दिया है। ये सभी ग्रामीण और ब्लॉक स्तरीय पदाधिकारी हैं। कांग्रेस पार्टी ने उन सभी पर पार्टी उम्मीदवार के बजाए बागी उम्मीदवार के लिए चुनावी काम करने का आरोप लगाया है।
ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि सहसपुर सीट पीसीसी चीफ को शूट नही हुई है। सहसपुर में किशोर को त्रिकोणीय मुकाबले में फंसा हुआ माना जा रहा है। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि टिहरी से चुनाव लड़ने के इच्छुक पीसीसी चीफ को नरेंद्रनगर और ऋषिकेश जैसी सीट के बजाए सहसपुर की जंग में क्यों उतारा गया ?
बहरहाल माना जा रहा है कि अगर किशोर सहसपुर की जंग जीत गए तो पार्टी मे बड़े नेता बनकर उभरेंगे और अगर भितरघात के शिकार होकर चुनाव हार गए तो किशोर न केवल सियासी नेपत्थ्य में बल्कि सियासी बियावान में गुम हो जाएंगे। दरअसल पार्टी अध्यक्ष का उनका कार्यकाल भी समाप्त होने वाला है। ऐसे में हारे हुए जनरल पर फिर आलाकमान भंरोसा करेगा कहना मुश्किल है और सियासत में डूबते सूरज को सलाम करने की परम्परा कभी रही नही।