डेस्क- पीडीएफ को लेकर आए दिन की रार से न केवल सूबे की सरकार बल्कि दिल्ली दरबार भी परेशान दिख रहा है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय आए दिन पीडीएफ की घंटी बजा लेते हैं और मीडिया में पीडीएफ बयान दे देते हैं। खबर है कि आलाकमान को मर्ज अब नसीहत की दवा से ठीक होने वाला नहीं बल्कि ऑपरेशन वाला दिख रहा है।
कब से बढ़ा सियासी मर्ज ज्यादा
जब से राज्य सभा चुनाव हुए हैं तब से सरकार और संगठन के मुखिया के रिश्ते तल्ख होते जा रहे हैंं। किशोर को जब मुख्यमंत्री ने पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनवाया था तबसे किशोर पीडीएफ को लेकर राग अलापते रहे। उन्हें उम्मीद थी कि उनके सियासी भविष्य को देखते हुए उन्हें राज्य सभा भेज दिया जाएगा क्योंकि अगर वे राज्य में बने रहे तो उनके सियासी भविष्य के लिए संकट पैदा हो जाएगा। लेकिंन किशोर की मनइच्छा पूरी नहीं हुई। पहली बार आलाकमान ने राजब्बर को सूबे के कोटे से राज्य सभा भिजवाया जबकि दूसरी बार जब सीएम की चल सकती थी तो उन्होंने किशोर पर नजरेइनायत करने के बजाए प्रदीप टम्टा को राज्यसभा भिजवाया ।
न खुदा ही मिला न बिसाले सनम
ऐसे में किशोर को अपना सियासी भविष्य डांवाडोल लगने लगा। राज्य सभा मिली नहीं और उनकी टिहरी सीट पीडीएफ के कब्जे में है। ऐसे में अपना सियासी वजूद तलाशने के लिए किशोर को पीडीएफ का राग अलापने के लिए मजबूर होना पड़ा। अब जब बात निकल गई तो उसे दूर तक जाना ही था। पीडीएफ पर आए दिन तल्ख होते किशोर को सरकार प्रमुख मे संकेतों में कई बार समझाया भी लेकिन किशोर शायद किशोर ही बने रहे। ऐसे में पी़डीएफ प्रमुख मंत्री प्रसाद नैथानी ने कांग्रेस की प्रदेश प्रभारी अंम्बिका सोनी से पीसीसी अध्यक्ष किशोर की शिकायत कर दी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांंधी से मिलने के लिए समय मांग लिया। नैथानी ने साफ कर भी दिया कि वे कांग्रेस आलाकमान से इस बात पर स्पष्ट जबाब लेंगे कि कांग्रेस को पीडीएफ का समर्थन चाहिए या नहीं। अब हाल ये हैं कि रोज-रोज की झिक झिक से सरकार भी परेशान है और पीडीएफ भी।
क्या बन रही है संभावना ?
ऐसे में सियासी फिजा में एक खबर उड़ रही है कि हो सकता है सूबे में एक बड़ा परिवर्तन हो जाए क्योंकि सरकार चुनावी साल में पीडीएफ की ओर से कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती । सूत्रों की माने तो किशोर के पंर कतरे जा सकते हैं ताकि उनका पीडीएफ शोर थम जाए। माना जा रहा है कि किशोर के सिर सजा ताज उतारा जा सकता है। तो फिर चुनावी साल में इसे किसके सिर सजाया जाएगा ये बड़ा सवाल है क्योंकि आचार संहिता के लिए बेहद कम समय बचा है। कयास लगाए जा रहे हैं कि बदली हुई परिस्थिति में आलाकमान बड़ा फैसले लेते हुए चुनावी घड़ी में पार्टी प्रमुख का ताज सीएम के सिर पर भी सजा सकता है ताकि चुनावी जंग में लड़ने में उन्हें कोई तकलीफ न हो। तय है कि अगर ऐसा हुआ तो सीएम के लिए भी ये किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगा क्योंकि अगर जीते तो वही नायक होंगे और अगर ऊंच-नीच हुई तो ठीकरा उन्हीं के सिर फूटेगा। साथ ही ये भी माना जा रहा है कि आलाकमान के इस फैसले से कई लोगों के लिए किशोर हठ का पिंड छूट जाएगा । होगा क्या ये तो आलाकमान ही जाने लेकिन देहरादून में तो यही हवा उड़ रही है।