देश का एक प्राचीन आध्यात्मिक नगर जोशीमठ बड़े भूधंसाव से खतरे की जद में आ गया है। सरकारी आंकड़ों में ही 550 से अधिक मकानों में भूधंसाव रिपोर्ट किया जा चुका है। हालात ये हैं कि एक बड़ा होटल झुककर दूसरी इमारत के सहारे टिका हुआ है। लोगों ने घरों से पलायन शुरु कर दिया है। जिनके पास विकल्प नहीं है वो दरारों वाले घरों में रहने को मजबूर हैं।
NTPC की टनल बनी विलेन
स्थानीय लोग जोशीमठ में हो रहे भूधंसाव के लिए NTPC की एक टनल को जिम्मेदार मानते हैं। दरअसल इस इलाके में NTPC एक बड़ी बिजली परियोजना को बना रहा है। ये परियोजना है तपोवन विष्णुगढ़ बिजली परियोजना। ये परियोजना जोशीमठ के पास से गुजर रही अलकनंदा नदी और उसकी ट्रिब्यूटरी धौलीगंगा नदी पर बनाई जा रही है। कुल 520 मेगावाज इस परियोजना के लिए इस इलाके में लगभग साढ़े ग्यारह किलोमीटर की टनल बननी है। इस अंडरग्राउंड टनल को बनाने के लिए NTPC ने दो तरीके अपनाए। एक तरफ से टनल बोरिंग मशीन (TBM) लगाई गई जबकि दूसरी तरफ से इसे ब्लास्टिंग और अन्य तरीकों से खोलने का फैसला लिया गया। TBM के जरिए लगभग 8.3 किलोमीटर की सुरंग बनाई जानी थी। इसके लिए दुनिया की एक अत्याधुनिक TBM मंगाई गई। जागरण की एक पुरानी रिपोर्ट बताती है कि इस TBM की कीमत करीब 175 करोड़ रुपए थी।
TBM से काम शुरु हुआ तो जोशीमठ के नीचे की चट्टानों को काटने में मशीन को दिक्कत आने लगी। जहां आमतौर पर एक महीने में ये मशीन 800 – 900 मीटर की सुरंग बना सकती थी वो जोशीमठ में सिर्फ 200 से 300 मीटर की ही सुरंग बना पा रही थी। इसी दौरान एक हादसा हो गया है और सुरंग में कीचड़ और मलबा आ गया। इसकी वजह से ये मशीन वहीं फंस गई। इस मशीन की दिक्कत ये थी कि ये पीछे नहीं आ सकती थी। जोशीमठ में ये आगे भी नहीं जा पाई और वहीं फंस गई।
अब इस मशीन को निकालने के लिए NTPC ने नए सिरे से काम शुरु किया और अन्य ब्लास्टिंग और अन्य तरीकों से टनल का काम होने लगा।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि इस टनल के काम से पूरा जोशीमठ अस्थिर हो गया और अब यही टनल भूधंसाव की बड़ी वजह बन रही है।
हालांकि NTPC के अधिकारी इस बात से इंकार करते हैं। बताते हैं कि हाल ही में NTPC के अधिकारियों ने कुछ स्थानीय पत्रकारों को टनल का दौरा भी कराया और ये साबित करने की कोशिश की कि उनकी टनल ने जोशीमठ को नुकसान नहीं पहुंचाया है।
हेलंग- मारवाड़ी बाईपास भी एक वजह?
जोशीमठ में भूधंसाव के लिए ऑलवेदर रोड के लिए बन रहा एक बाईपास भी जिम्मेदार माना जा रहा है। स्थानीय लोगों की माने तो इस बाइपास को बनाने के लिए उस चट्टान को बड़े पैमाने पर काट दिया गया जिसपर जोशीमठ नगर का भार टिका हुआ था। जेसीबी, पोकेलेन मशीनों और कहीं कहीं ब्लास्टिंग के जरिए इस बाईपास को बनाया जा रहा है। ये बाईपास जोशीमठ के निचले हिस्से से होता हुआ नगर के बाहर बाहर निकल रहा है। ऐसे में इस बाईपास के चलते भी भूधंसाव की आशंका है।
ड्रेनेज सिस्टम का अभाव बड़ी वजह
हालांकि सरकार और भूवैज्ञानिकों की माने तो जोशीमठ में ड्रेनेज सिस्टम के न होने से भी भूधंसाव बड़े पैमाने पर हुआ है। धीरे धीरे जमीन में रिसता पानी पहाड़ को कमजोर करता गया और यही वजह है कि नगर की आबादी का बोझ नहीं उठा पा रहा है।
1970 -71 की बाढ़ के बाद बनी कमेटी
स्थानीय लोग बताते हैं कि 1970 और 71 की बाढ़ के बाद जोशीमठ में भूस्खलन बढ़ने लगा। उस समय यूपी सरकार ने एक कमेटी का गठन किया था। उस समय गढ़वाल के कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में भूगर्भीय अध्ययन के लिए एक कमेटी बनी। इस अध्ययन में यह पता लगा कि जोशीमठ ग्लेशियर द्वारा लाई गई मिट्टी पर बसा हुआ है लिहाजा यह बहुत मजबूत चट्टान नहीं है। यह भूस्खलन का ही क्षेत्र है। तब यह कहा गया कि अगर जोशीमठ को बचाकर रखना है तो जोशीमठ में जो चट्टानें हैं उनको छेड़ा ना जाए। यहां भारी निर्माण कार्य न किए जाएं। इसके साथ ही भूस्खलन को रोकने के लिए ढलानों पर वृक्षारोपण करने की बात कही गई।