देहरादून। अपनी अनूठी परपंरा के लिए देश-दुनिया में विख्यात रवांई और जौनसार-बावर में हर तीज-त्योहार को मनाने का अंदाज निराला है। देशभर में लोग दीपावली का त्योहार एक साथ मनाते हैं, लेकिन यहां इसके ठीक एक महीने बाद बूढ़ी दीपावली मनाई जाती है। इसके पीछे लोगों का तर्क है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के चौदह साल वनवास काटने के बाद अयोध्या वापसी की सूचना जौनसार और रवाईं के लोगों को देर से मिली। जिस कारण यहां लोग महीनेभर बाद बूढ़ी दीपावली मनाते हैं। अधिकांश लोगों का मत है पहाड़ में ज्यादातर लोग अक्टूबर आखिर व नंवबर की शुरुआत में फसल कटाई आदि कार्यों में व्यस्त रहते हैं। इस दौरान कृषि-बागवानी के दबाव के चलते ही जौनसार और रवांई में ठीक एक माह बाद बूढ़ी दीपावली मनाई जाती है। जौनसार-बावर और रवाईं में प्रदूषण रहित दीपावली मनाई जाती है। क्षेत्रवासी आतिशबाजी करने के बजाए चीड़ व भीमल की लकड़ी की मशाल जलाकर गांव के पंचायती आंगन में होलियात निकालते हैं। साथ ही ढोल-दमाऊ की थाप पर हारुल के साथ परंपरागत तांदी-नृत्य कर दीपावली का जश्न मनाते हैं।