देहरादून। उत्तराखंड के तारीखी इतिहास का सबसे अहम दिन बीत गया और लोगों को रा्ज्य सरकार के आयोजनों में राज्य गीत की कमी खलती रही। जिस राज्य गीत को पूरे तामझाम के साथ वर्तमान हरीश रावत सरकार ने रिलीज कराया था वो गीत नौ नवंबर को हुए सरकारी आयोजनों में क्यों नहीं सुनाई दिया, ये सवाल अब उठने लगा है। क्या इसे लापरवाही माना जाए? अगर हां, तो इसके लिेए किसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?
दरअसल कुछ महीनों पहले रा्ज्य गीत का ऐलान किया गया था। ये घोषणा मुख्यमंत्री आवास के सभागार में खुद मुख्यमंत्री हरीश रावत ने की थी। इस कार्यक्रम में ना सिर्फ ये राज्य गीत गाया गया था बल्कि इस बात की घोषणा भी की गई थी कि भविष्य में इस गीत का संक्षिप्त रूप राज्य सरकार के आयोजनों में बतौर स्टेट एंथम गाया जाएगा। हैरानी देखिए कि मुख्यमंत्री जिस गीत को लेकर गंभीर रवैया अपनाते हैं, अधिकारी उसी को भूल जाते हैं।
राज्य गीत का फैसला करने के लिए बाकायदा एक कमेटी बनाई गई थी और उसी कमेटी ने राज्य गीत पर मुहर लगाई थी। इसके बाद राज्य के जाने माने लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी और अनुराधा निराला की आवाज में इस गीत को रिकार्ड किया गया था।
वहीं चर्चाएं ये भी हैं कि गीत को लेकर कुछ विवादों से बचने के लिए भी इसे साइड लाइन कर दिया गया। ऐसा किसी नए विवाद से बचने के लिए किया गया हो इस बात की आशंका भी जताई जा रही है। फिलहाल सवा करोड़ उत्तराखंडी मायूस हैं और राज्य का गीत खामोश है।