लेकिन सच्चाई ये है कि शहीद के परिवार वालों को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती है
शहादत पर सरकार मुआवजे और नौकरी देने का ऐलान करती है लेकिन सच्चाई ये है कि शहीद के परिवार वालों को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती है. जी हां ऐसा ही हुआ शहीद लांसनायक हनुमनथप्पा की पत्नी महादेवी के साथ जो की दर-दर की ठोकरें खा रही है और नौकरी तो छोड़िए वो झाड़ू पोछा करने को तैयार ही.
शहीद की पत्नी का कहना
शहीद लांसनायक हनुमनथप्पा की पत्नी महादेवी का कहना है कि मुझे अपना जीवन यापन करने के लिए फोर्स में नौकरी चाहिए। मैं झाड़ू-पोछा का काम करने के लिए भी तैयार हूं। मुझे एक नौकरी दी जाए ताकि मैं अपनी और अपनी बच्ची का जीवन-यापन कर सकूं। जब मेरे पति शहीद हुए थे तब बहुत सारे अधिकारियों, राजनेताओं, मंत्रियों ने मुझे नौकरी दिलाने और देने का वादा किया था लेकिन आज भी मुझे कौई नौकरी नहीं दी गई है। मुझे जिंदगी जीने के लिए एक विकल्प दें। शहीद हनुमनथप्पा की पत्नी महादेवी ने कहा कि मेरे लिए जिंदगी आसान नहीं है। मेरी बेटी आज भी अपने पिता को याद करती है। मैं उसे पूरा प्यार देना चाहती हूं जो उसके पिता के जीवित रहने के समय उसे मिलता था। मैं उसके पिता के जैसे उसे आर्मी में भेजना चाहती हूं। मैं उसे जवानों के त्याग और बलिदान की कहानियां सुनाती रहती हूं। मुझे उसके भविष्य़ को उज्जवल बनाने के लिए नौकरी की जरूरत है। मैं झाड़ू-पोछा का काम करने के लिए भी तैयार हूं ताकि मेरी बेटी का भविष्य अच्छा हो।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने किया था शहीद के परिवार से किसी एक व्यक्ति को नौकरी देने का ऐलान
महादेवी ने बताया कि उन्हें कर्नाटक सरकार ने आर्थिक सहायता और जमीन मुहैया कराई लेकिन जिंदगी जीने के लिए कोई दिशा नहीं दी। इतना ही नहीं हनुमनथप्पा का स्मारक बनाने के लिए कर्नाटक सरकार ने फंड भी जारी किया.. यह भी बताया जा रहा है कि स्मारक बनाने के लिए सामान भी मंगा लिए गए लेकिन फिर कंस्ट्रक्शन क्यों नहीं हुआ? कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने खुद शहीद के परिवार से किसी एक व्यक्ति को नौकरी देने का ऐलान किया था लेकिन आज तक उन्होंने भी अपना वादा पूरा नहीं किया।
सेना बोली हम करेंगे हर प्रकार की मदद
वहीं शहीद की पत्नी की ये पीड़ा जब सेना तक पहुंची तो सेना ने कहा है कि सियाचिन के वीर शहीद की पत्नी को अगर नौकरी की जरूरत हो तो उनकी पर्याप्त मदद की जाएगी। सेना ने कहा है कि हनुमनथप्पा के परिवार को सभी लाभ दिए गए हैं। वित्तीय रूप से यह 70 लाख रुपये से ज्यादा की रकम है। लिबरल पेंशन दी जा रही है, जिसका मतलब फुल सैलरी है। हर तरह की मदद दी जा रही है और हम परिवार के संपर्क में हैं। सोशल मीडिया या मीडिया के जरिये नौकरी की जो मांग आई है, वह नया पहलू है।
हिमस्खलन के कारण बर्फ के नीचे दबने से हुए थे शहीद
सियाचिन में पिछले साल हिमस्खलन के कारण बर्फ के नीचे दबने के बाद भी 6 दिन तक जिंदगी के लिए संघर्ष करने वाले हनुमनथप्पा शहीद हो गए थे। उनकी उम्र 33 साल थी। उनको सेना मेडल से सम्मानित किया गया था। सेना प्रमुख बिपिन रावत ने उनकी पत्नी को हाल में मेडल दिया था।