उत्तरकाशी– बढ़ते तापमान से जूझते गंगा के उद्गम स्थल गोमुख ग्लेशियर पर न केवल पिघलने का खतरा मंडरा रहा है बल्कि भूस्खलन का खतरा भी मंडरा रहा है। इस बरसात में भूस्खलन के कारण उद्गम स्थल गोमुख झील के रूप में तब्दील होकर रह गया है। इस बात की जानकारी नमामि गंगे मिशन के उन ट्रेकर्स ने दी जो गोमुख का दौरा कर वापस लौटे हैं।
गंगा ट्रैक के तहत वैज्ञानिक, पर्यावरण कार्यकर्ता और हिमालय की सेहत के लिए चिंतनशील लोग जब गंगोत्री धाम से 24 किलोमीटर की यात्रा पर गोमुख पहुंचे तो वहां का नजारा देख उनके माथे पर चिंता की लकीरे खींच कर रह गई।
दरअसल गंगा के उद्गम स्थल गोमुख के ऊपर सुमेरू पर्वत के निचले हिस्से से मलबा आ गया है। इस मलबे की वजह से गोमुख पर छोटी झील बन गई है। गोमुख से लौटे दल की माने तो अब भागीरथी ग्लेशियर से नहीं बल्कि मलबे से बनी झील से ही निकल रही है। जबकि मलबे के कारण गोमुख पर ही भागीरथी की धारा पश्चिम दिशा में मुड़ गई है।
अभियान के तहत गोमुख पहुंचे वाडिया संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. पीएस नेगी के मुताबिक पिछले साल तक गोमुख की जो हिमशिला 80 मीटर तक ऊंची नजर आती थी, वह अब 30 मीटर रह गई है। यही नहीं पहले गोमुख का यह नजारा करीब एक किमी दूर से नजर आ जाता था, लेकिन अब सामने जाने पर ही नजर आ रहा है।
गोमुख पहुंचे पर्यावरण कार्यकर्ता जगत सिंह जंगली ने बताया कि 70 के दशक में वे सात दिन तक गोमुख रहे थे, पर अब और तब का नजारा एकदम भिन्न है। जानकारों का मानना है कि यदि यूं ही भूस्खलन हुआ तो गोमुख का नजारा पूरी तरह मलबे में दब सकता है। पर्यावरण कार्यकर्ता द्वारिका प्रसाद सेमवाल ने भी गोमुख के बदलते स्वरूप पर चिंता जताई। बताया कि गोमुख का स्वरूप हर साल बदल रहा है, जो चिंता का विषय है।
गंगोत्री धाम से लेकर गोमुख तक के करीब 24 किमी दायरे में पूरी घाटी बुरी तरह भूस्खलन की चपेट में है। फिजीकल रिसर्च लेब्रोट्री अहमदाबाद के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नवीन जुयाल के मुताबिक हजारों साल पहले ग्लेशियर गंगोत्री धाम तक फैला हुआ था, लेकिन बाद में ग्लेशियर पिघल गया। अब ग्लेशियर के नीचे रह गया मलबा लूज मटीरियल के रूप में भूस्खलन की चपेट में आ रहा है।
वहीं वाडिया संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. पीएस नेगी के मुताबिक दुनिया भर में बढ़ते तापमान के लिए ब्लैक कार्बन को प्रमुख वजह माना जाता है। लेकिन गोमुख में ब्लैक कार्बन की मौजूदी मामूली पाई गई।
गोमुख ग्लेशियर में ब्लैक कार्बन का पता लगाने के लिए वाडिया भू संस्थान ने भोजवासा और चीड़वासा में दो ऑब्जर बैटरी स्थापित की हैं शुरुआती छह माह के नतीजों की जांच से ये बात संस्थान के वैज्ञानिकों को पता चली है।
डा नेगी की माने तो ग्लेशियरों का पिघलना एक सामान्य प्राकृतिक क्रिया है। गंगोत्री ग्लेशियर भी प्रतिवर्ष 10 से 25 मीटर की अलग-अलग दर से पिघलना रिकॉर्ड हुआ है। वहीं डॉ. नेगी का मानना है कि ग्लेशियर में जमा मलबे से गोमुख को फायदा भी हो सकता है। क्योंकि मलबे से ढक जाने के कारण ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार कम हो जाएगी।