घनसाली(हर्षमणि उनियास) : राज्य को बने 18 साल हो गए हैं लेकिन अभी भी कई ऐसे गांव हैं जहां लोगों को मूलभूत सुविधाएं तक नसीब नहीं हो पा रही है. कहीं पानी की असुविधा है तो कहीं बिजली की तो कहीं सड़कों की…ऐसा ही एक गांव है घनसाली विधानसभा के अति सीमांत गांव कांगड़ा में. लेकिन यहां के लोगों ने जो काम किया वो काबिले तारीफ है लेकिन राज्य के लिए शर्म की बात भी है जहां वोट देने वाले लोगों को खुद फांवड़ा उठाकर पहाड़ काटना पड़ा और सड़क निर्माण कार्य में जुटना पड़ा. वहीं भूखे प्यासे लोगों की इस दौरान कोई सुध लेने नहीं पहुंचा.
लोगों ने किया 26 साल का इंतजार
दशरथ मांझी ने पहाड़ खोदकर सड़क बना दी थी…उन्हीं से प्रेरणा लेकर और अव्यवस्था से तंग लोगों ने खुद ही उन कामों को किया है जो सरकार से करने की उम्मीद की जाती है। ऐसा ही कुछ उत्तराखंड के घनसाली विधानसभा के अति सीमांत गांव कांगड़ा में देखने को मिला, जहां लोगों ने 26 साल तक अपने गांव में सड़क बनने का इंतजार किया और जब सरकारों की कान पर जूं नहीं रेंगी तो गांव के लोगों ने खुद ही फावड़ा उठाकर सड़क बनाना शुरू कर दिया है। कांगड़ा गांव के लोगों ने कई लम्बी सड़क के लिए पहाड़ खोद डाला है।
कांगड़ा गांव के ग्रामीण आज दूसरे दिन भी सड़क बनाने के काम में डटे रहे
घनसाली विधानसभा के अति सीमांत गांव 10-12 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पर स्थित कांगड़ा गांव के ग्रामीण आज दूसरे दिन भी सड़क बनाने के मोर्चे पर डटे रहे. लोगों ने लगभग 300-350 मीटर सड़क का निर्माण किया. लोगों का कहना है कि वह सभी कल से सड़क निर्माण कार्य में लगे हैं लेकिन कोई भी उनकी सुध लेने नहीं आया। ग्रामीणों का कहना है कि जनप्रतिनिधि से लेकर लोक निर्माण विभाग के अधिकारी किसी ने भी अभी तक कोई सुध नहीं ली.
26 साल के लंबे इंतजार के बाद भी सड़क नसीब नहीं हुई
उत्तराखंड साल 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग हुआ है. तब से लेकर अब तक कई गांव ऐसे हैं जहां लोगों को मूलभूत सुविधाएं तक नहीं मिल पा रही है. टिहरी गढ़वाल जिले के घनसाली विधानसभा के अति सीमांत गांव कांगड़ा के ग्रामीणों का हाल भी कुछ ऐसा ही है. जिन्हें 26 साल के लंबे इंतजार के बाद भी सड़क नसीब नहीं हुई जिसके बाद खुग गांववालों ने 26 सालों से लंबित पड़ी सड़क का कार्य शुरु किया। सैंकड़ों गांववालों ने मिलकर सड़क के लिए खुदाई शुरु की.
70% से अधिक महिलाएं सड़क खोदने के कार्य में जुटी
आपको बता दें खास बात ये है कि इस काम में सबसे ज्यादा महिलाएं शामिल है. गांव की 70% से अधिक महिलाएं सड़क खोदने के कार्य में जुटी हैं जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ग्रामीणों में और महिलाओं में कितना गुस्सा है.
कई सरकारें आई और गई लेकिन उन्हें सिर्फ चुनाव के समय याद किया गया-ग्रामीण
कांगड़ा गांव के लोगों का कहना है कि कई सरकारें आई और गई लेकिन उन्हें सिर्फ चुनाव के समय याद किया गया. पिछली सरकारों ने मात्र अपनी छवि चमकाने और जीत के लिए उनका इस्तेमाल किया. गांववालों ने आरोप लगाया कि पिछली सरकारों ने केवल झूठा आश्वाशन उनको दिया। कांगड़ा गांव केवल वोट बैंक ही बनकर रह गया. वहीं अब लोगों ने आर पार की लड़ाई का मन बना लिया है।
सरकार ले खबर का संज्ञान, ऐसा न हो की बहुत देर हो जाए
हम चाहते हैं कि त्रिवेंद्र सरकार इस खबर का संज्ञान जरुर लें और कांगड़ा गांव जाकर वहां के लोगों की समस्याओं को जानकर उसका निपटारा करें…कहीं ऐसा न हो की बहुत देर हो जाए और लोगों के मन में वोट देने को लेकर खिन्नता पैदा हो जाए, हालांकि लोगों ने खुद हाथ में फांड़वा लेकर सड़क का काम शुरु किया लेकिन इस दौरान भी कोई सुध लेने नहीं पहुंचा…हम इस खबर के माध्यम से सरकार से अपील करते हैं कि भूखे-प्यारे लोग जो निर्माण कार्य में जुटे हैं उनकी सुध ली जाए ताकि इतने सालों से समस्याओं को झेल रहे गांववाले इस सरकार को हमेशा याद रखे.