देहरादून – उत्तराखंड के पहाड़ों में अपनी पुश्तैनी सैकड़ों नाली जमीन छोड़कर जिन मैदानी इलाकों के 100 गज के प्लॉट में अपनी दुनिया बसाने की जिद ठानी आबादी को भूवैज्ञानिक चेता रहे हैं कि अगर उनकी आशांका सच साबित हुई तो उत्तराखंड के मैदानी इलाके उस दिन मरघट से दिखाई देंगे। दरअसल भूगर्भ पर पैनी नजर बनाए रखने वाले वैज्ञानिकों को गढ़वाल में भयंकर तबाही का मंजर दिख रहा है।वैज्ञानिकों ने गढ़वाल हिमालय में आठ रिक्टर स्केल से भी ज्यादा बड़ा भूकंप आने की आशंका जताई है।
नेशनल सेंटर फॉर सेस्मोलॉजी के के निदेशक डॉ. विनीत गहलौत की माने तो जिस भूकंप की आशंका जताई जा रही है, उसकी तीव्रता उत्तरकाशी में 1991 में आए भूकंप से नौ सौ गुना ज्यादा हो सकती है। इस भूकंप से इंडियन प्लेट 10 मीटर तक खिसकने और इसका प्रभाव 250 किलोमीटर के दायरे पर पड़ने की संभावना है।
इस क्षेत्र में सात सौ सालों से बड़ा भूकंप नहीं आया है, जिस कारण बड़े भूकंप की आशंका व्यक्त की गई है। वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि समूचा उत्तर भारत इस भूकंप की चपेट में आएगा और सबसे अधिक नुकसान तराई के क्षेत्रों में होगा।
दून में आयोजति भूकंप वैज्ञानिकों की कार्यशाला में करीब करीब सभी वैज्ञानिकों ने बड़े भूकंप की आशंका जताई। वैज्ञानिकों ने कहा कि गढ़वाल हिमालय में आठ रिक्टर स्केल से ज्यादा बड़े भूकंप के लायक ऊर्जा संचित हो गई है। इस क्षेत्र में जो छोटे भूकंप आ रहे हैं उनसे मामूली ऊर्जा रिलीज हो रही है। इसके चलते बड़े भूकंप का खतरा निरंतर बना हुआ है।
वाडिया भू विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक जेजी पेरूमल ने अपने अध्ययन का हवाला देते हुए बताया कि इस क्षेत्र में वर्ष 1344 से अभी तक बड़ा भूकंप नहीं आया। उस समय भूकंप का केंद्र रामनगर के पास था जिसका असर पंजाब तक होने के प्रमाण मिले हैं।
वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन के आधार पर कहा कि जिस तीव्रता का भूकंप कांगड़ा में आया भूकंप 1905 में हिमाचल के कांगड़ा में आया था, यदि आज आए तो 10 लाख लोगों की मौत हो जाएगी। यदि इसी स्केल का भूकंप उत्तराखंड में आए तो मौत का आंकड़ा इससे भी ज्यादा होगा क्योंकि उत्तराखंड में जनसंख्या घनत्व हिमाचल से ज्यादा है