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Savitribai Phule Jayanti: देश की पहली महिला टीचर, जिसने महिलाओं को मुंडन से बचाया, पढ़े उनकी कहानी

Renu Upreti
2 Min Read
Savitribai Phule Jayanti

देश में हर साल 3 जनवरी को सावित्रीबाई फुले की जयंती मनाई जाती है। सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के एक गांव में हुआ था। उन्हीं को सम्मान देने के लिए हर साल इस दिन को सेलिब्रेट किया जाता है। सावित्रीबाई फुले को समाज सेविका, नारी मुक्ति आंदोलन में हिस्सा लेने वाली और देश की पहली अध्यापिका के रुप में जाना जाता है। सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं के लिए भी लम्बी लड़ाई लड़ी और उनकी स्थिति में सुधार के लिए बहुत योगदान दिया।

दलित परिवार में जन्मी थी Savitribai Phule

सावित्रीबाई एक दलित परिवार में जन्मी थी। पहले के समय में दलितों को शिक्षा आदि से वंचित रखा जाता था लेकिन सावित्रीबाई फुले ने इन सब कुरीतियों से लड़कर अपनी पढ़ाई जारी रखी। उनके सम्मान में छुआ-छूत का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होनें इन सबसे हार न मानकर अपनी शिक्षा जारी रखी। इसके बाद उन्होनें अहमदनगर और पुणे में अध्यापक बनने की ट्रेनिंग पूरी की और बाद में अध्यापिका बनीं।

देश में कई महिला विघालय खोले

सावित्रीबाई फुले का 9 साल की उम्र में विवाह हो गया था। उनका विवाह ज्योतिबा फुले के साथ हुआ था। उनके पति की उम्र विवाह के समय 13 वर्ष थी। अपनी ट्रेनिंग पूरी करने के बाद उन्होनें अपने पति के साथ 1848 में पहला महिला स्कूल खोला। इसके बाद उन्होनें देशभर के कई अन्य महिला विघालयों को खोलने में मदद की। उनके इस कार्य के लिए ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उन्हें सम्मानित किया था।

नाइयों के खिलाफ किया आंदोलन

सावित्रीबाई फुले ने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर कई आंदलनों में भाग लिया। जिसमें में से एक सती प्रथा भी था। उन्होनें विधवा होने पर महिलाओं का मुंडन कराए जाने को लेकर नाइयों के खिलाफ आंदोलन किया था।

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