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उत्तराखंड में मंत्रियों के अजब हाल है। यहां मंत्रियों से विभाग संभल नहीं रहें हैं और कमान अधिकारियों की खींचने की कोशिश हो रही है। अब सतपाल महाराज को ही ले लीजिए। महाराज के जिम्मे में लोक निर्माण विभाग जैसे अहम विभाग की जिम्मेदारी है। पर लगता है अधिकारियों के कान खींचने की कोशिश में महाराज अधिकारियों से काम लेना ही भूल गए हैं।
ऐसा इसलिए कह रहें हैं कि क्योंकि आंकड़ों में अब तक PWD ने सिर्फ 47 फीसदी बजट ही खर्च किया है। सड़कें या टूटी हैं या फिर बन नहीं रहीं हैं लिहाजा बजट भी खर्च नहीं हो रहा। अब इस बात को सभी जानते हैं कि फाइनेंशियल इयर खत्म होने लगता है तो पूरा बजट ‘ठिकाने’ लगा दिया जाता है। उस वक्त फाइलों पर मंत्रियों की लगाम भी नहीं रहती और न ही अधिकारियों की रहती है। सब कुछ फटाफट और फुर्ती के साथ हो जाता है।
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बतौर मंत्री सतपाल महाराज के कामकाज की समीक्षा की जा सकती है लेकिन जनता समीक्षा से अधिक आलोचना और अपनी जाएज मांगों को उठान में विश्वास रखती है।
चमोली के नंदानगर इलाके में कई छात्राएं सड़क पर उतर आईं। मांग वही पुरानी सड़क की है। आमतौर पर राज्य के अधिकतर इलाकों से ऐसी खबरें और तस्वीरें सामने आती हैं लेकिन समय के साथ दब जाती हैं और मंत्रियों के कान तो मानों ऐसी आवाजों को फिल्टर कर देते हैं।
फिलहाल महाराज जी भी अधिकारियों की एसीआर लिखने पर अधिक फोकस किए हुए दिखते हैं। उन्हे इस बात से हो सकता है फर्क पड़ता हो कि अधिकारी काम नहीं कर रहें हैं, सड़कें नहीं बन रहीं हैं, जनता की जाएज मांगें पूरी नहीं हो रहीं हैं लेकिन ये फर्क पड़ना कहीं दिख नहीं रहा है।