देहरादून- पीएम मोदी दिल्ली से केदारनाथ आए और वापस चले गए। राज्य सरकार ने सैकड़ों सरकारी मुलाजिमों की पीएम दौरे के लिए केदारनाथ में ड्यूटी लगाई, ताकि कोई कमी न रह जाए । लेकिन जिन अफसरों के काबिल कंधों पर ये जिम्मेदारी डाली गई वे कंधे नकाबिल ही नहीं निकले बल्कि लापरवाह भी निकले। इतने लापरवाह कि उनकी लापरवाही की वजह से एक सरकारी मुलाजिम को अपनी जान गंवानी पड़ गई।
जी हां यकीन मानिए सिडकुल के कर्ताधर्ता और राज्य के आला नौकरशाह में शुमार आर राजेश कुमार की लापरवाही के चलते बुजुर्ग फार्मसिस्ट थपलियाल को अपनी जान गंवानी पड़ी। दरअसल पीएम दौरे के लिए बेमौत मारे गए बुजुर्ग फार्मसिस्ट थपलियाल की ड्यूटी भी केदारनाथ में लगाई गई थी। बताया जा रहा है कि सभी मंत्रियों, अधिकारियों को स्वास्थ्य महकमे के अधिकारियों और कर्मचारियों को केदारनाथ लाने ले जाने की जिम्मेदारी राज्य के नागरिक उड़डयन विभाग के काबिल अफसरों पर थी।
खबर है कि तत्कालीन मुख्य सचिव और नागरिक उडडयन विभाग की जिम्मेदारी उठा रहे एस. रामा स्वामी ने इसके लिए अपने नायब आर. राजेश कुमार को जिम्मेदारी सौंपी। ताकि पीएम के केदार दौरे में किसी भी मंत्री, अधिकारी और कर्मचारी को आवगमन में कोई तकलीफ न हो सभी अपने फर्ज को सलीके से निभा सकें। लेकिन हुआ ये कि जैसे ही पीएम मोदी ने केदार से दिल्ली के लिए कूच किया केदारनाथ में अव्यवस्थाएं फैल गई।
आर. राजेश कुमार की लापरवाही के चलते मंत्री हों या विधायक या फिर सरकारी मुलाजिम सभी परेशान नजर आए। कार्डियोलॉजिस्ट रहे हों या बुजुर्ग फार्मसिस्ट थपलियाल सभी को केदाराधाम से अपनी ड्यूटी निभाने के बाद पैदल मार्च करना पड़ा। सूबे के आलाअधिकारी आर.राजेश कुमार ने अपनी जिम्मेदारी किस काबिलियत से निर्वाह की कहीं नजर नहीं आया। नतीजा ये हुआ कि सीधे-साधे बुजुर्ग गढ़वाली सरकारी फार्मसिस्ट थपलियाल जी को केदारघाटी से वापस लौटत हुए पैदल उतराई में अपनी जान गंवानी पड़ी।
आज थपलियाल जी हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी मौत साबित कर रही है कि अगर आर.राजेश कुमार अपने फर्ज का सलीके से निर्वाह करते तो वे वेवक्त काल का निवाला नहीं बनते। ऐसे में सवाल उठता है क्या सरकार फार्मासिस्ट थपलियाल की मौत के लिए मिस्टर आर.राजेश कुमार प्रभारी सचिव नागरिक उड्डयन को जिम्मेदार मानेगी।
या दो चार तीखे सवाल पूछ कर उन्हें इसका अहसास कराएगी कि अगर सरकार के खाते से मोटी पगार लेने वाले आर. राजेश कुमार अपने फर्ज को तरीके से निभाते तो बुजुर्ग फार्मसिस्ट थपलियाल आज जिंदा होते। उनका परिवार उनकी याद में आंसू नहीं बहा रहा होता। सवाल ये भी है कि उत्तराखंड सरकार अपने ऐसे लापरवाह सफेद हाथी बने अफसरों को कब तक झेलेगी।