देहरादून- सियासत का विद्रूप चेहरा देखना हो तो रिस्पना के गंदे पानी में उसके अक्स साफ-साफ दिखाई देते हैं। ऋषिपर्णा पहचानती है अपने हर उस गुनाहगार को जिसने उसे मैला करते हुए रिस्पना बनाया। कहते हैं कभी मसूरी से निकलने वाली ऋषिपर्णा नदी द्रोण नगरी की प्राणवाहनी थी।
द्रोण नगरी देहरादून में तब्दील हुई और ऋषिपर्णा नदी को सियासत ने रिस्पना के गंदे नाले के रूप में मशहूर कर दिया। मसूरी ने देहरादून तक अब रिस्पना सड़ाध मारते पानी की धारा है। ऐसे में टीएसआर सरकार को उम्मीद है कि उसके प्लान से रिस्पना एक बार फिर से ऋषिपर्णा के रूप में जी उठेगी। हालांकि इसकी कोशिश पहली निर्वाचित एन.डी. तिवारी सरकार ने भी की थी लेकिन ऋषिपर्णा के गुनाहगारों ने उसे रिस्पना रहने के लिए अपनी जान लड़ा दी।
बहरहाल रिस्पना को ऋषिपर्णा बनाने के लिए टीएसआर सरकार की जो योजना है उसके तहत रिस्पना में छोटे-छोटे चैक डैम बनाए जाएंगे जबकि इसके किनारों पर सघन वृक्षारोपण होगा। उम्मीद है कि वाटर रिचार्ज होने से रिस्पना धीरे-धीरे ऋषिपर्णा होकर जी उठेगी। इसके लिए सरकार जहां आम जनता से आगे आने का आह्वान करेगी वहीं ईको टास्क फोर्स 127 गढ़वाल राइफल्स भी इसमें बढ़चढ़ कर हिस्सा लेगी।
मुख्यमंत्री की माने तो ‘‘रिस्पना से ऋषिपर्णा’’ मिशन राज्य सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में है। इसके लिए राज्य सरकार पर्याप्त धनराशि का इंतजाम करेगी।जबकि इसके पुनर्जीवीकरण के लिए एक स्वतन्त्र निकाय की स्थापना भी करेगी। सीएम त्रिवेंद्र रावत ने कहा कि रिस्पना के पुनर्जीवीकरण को एक महाजन अभियान बनाना होगा। जल्द एक वेबसाइट भी बनाई जाएगी ताकि युवा इस मिशन में शामिल हों। वहीं सीएम रावत ने इस दिशा में नदी की सेटेलाइट इमेजरी करने की जानकारी भी दी है।
लेकिन बड़ा सवाल ये है कि मौजूदा सरकार ऋषिपर्णा को रिस्पना बनाने वाले इसके किनारे बसे लोगों को हटाने का साहस दिखा पाएगी? क्या सरकार अपने मिशन से रिस्पना का वो भव्य रूप दिला पाएगी जो कभी ऋषिपर्णा का था। ये तभी मुमकिन है जब नदी किनारे के कब्जेदारों को बिना कोई रहम बरते हटाया जाए। बहरहाल अगर टीएसआर सरकार अपने इस मिशन में कामयाब होती है तो ये इच्छा शक्ति की नजीर बन जाएगी, हालांकि होगा क्या ये वक्त ही बताएगा क्योंकि कभी तिवारी सरकार ने भी कोशिश की थी। लेकिन तब सियासत की तिकड़म के आगे न उत्तराखंड की चली न ऋषिपर्णा की, सियासत के अट्टहास के बीच ऋषिपर्णा का चीर हरण रिस्पना के रूप में होता रहा जो अब तक जारी है।