देहरादून (मनीष डंगवाल)- उत्तराखंड में सरकार की आंखो के नीचे किस तरह अधिकारी अपनी मनमानी थोपने का काम करते है, और सरकार को उसका पता भी नहीं होता इसका एक उदाहरण हम आपको बता रहे हैं। जी हां मामला 2014 का जब रिजनल ट्रांसपोर्ट आॅथॉरिटी ने अपनी मनमानी वाहन स्वामियों पर थोपी थी और ओवर लोडिंग और परमिट कैंसिल करने को लेकर जुर्माना कई गुना बढ़ा दिया था,लेकिन रिजनल ट्रांसपोर्ट आॅथॉरिटी के आदेश के आगे वाहन स्वामी कुछ नहीं कर पाए और आॅथॉरिटी तब से लेकर अब तक जो जुर्माना ज्यादा ले रही है उसे चुपचाप भरते जा रहे हैं।
सिटी बस महासंघ ने मांगा न्याय
रिजनल ट्रांसपोर्ट आॅथॉरिटी 10 नम्बर 2014 की बैठक में जो जुर्माना मनमाने तरीके से बढ़ाया गया. उसे शासन को भेजा ही नहीं और बिना शासन के नोटिफिकेशन के खुद की नियम बनकार ज्यादा जुर्माना वसूल करने लगे,लेकिन रिजनल ट्रांसपोर्ट आॅथोरिटी की मनमानी के खिलाफ सिटी बस महासंघ ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया,लेकिन हाईकोर्ट ने मामला राज्य अपीलीय न्याधिकरण को भेज दिया,जिसमें सिटी बस महासंघ के पक्ष में राज्यअपीलीय न्याधिकरण ने फैसला सुनाया है। राज्यअपीलीय न्याधिकरण ने सिटी बस महासंघ के पक्ष में इसलिए फैसला सुनाया है क्योंकि बिना नोटिफिकेशन के रिजनल ट्रांसपोर्ट आॅथरटी ज्यादा जुर्माना ले रही है।
क्या कहते हैं मानक
दरसल पूरे देश में मोटरवैकिल एक्ट 1986 के तहत वाहनों पर नियम कानून तय होते है,और एक्ट के तहत पूरे देश में एक जैसा कानून है जिससे रिजनल ट्रांसपोर्ट आॅथॉरिटी ने भी नहीं मना है। अभी पूरे देश में जो जुर्माना वसूला जा रहा है गढ़वाल मण्डल रिजन में उसे ज्यादा जुर्माना परिवहन विभाग वसूल रहा है।
कितना का है पैनल्टी में अंतर
यदि किसी वाहन स्वामी को अपना परमिट सरेंडर करना है तो वह 6 महीने तक निशुःल्क में परमिट कैंसिल कर सकता है. ये नियम गढ़वाल मण्डल को छोड़कर पूरे देश में है। वहीं गढवाल मण्डल में केवल 15 दिन तक ही परमिट सरेंडर किया जा सकता है उसके बाद 15 दिन के बाद से 6 महिने तक 1000 प्रतिमाह पैनल्टी वाहन स्वामी को अदा करने पडेंगी।
एक देश दो कानून के साथ एक प्रदेश का कानून
वहीं पूरे देश 1 साल बाद जहां परमिट सरेंडर करने पर परमिट पर पैनल्टी 2000 प्रतिवर्ष लगती है,वहीं गढ़वाल मण्डल में 6 माह से 1 वर्ष के लिए प्रति माह 2000 रूपये की पैनल्टी लगती है। खास बात ये है पूरे देश में 5 साल परमिट सरेंडर करने के बाद जहां निरस्त माना जाता है वहीं गढवाल मण्डल में 1 साल के बाद परमिट सरेंडर हो जाता है। कुल मिलाकर इसे एक देश दो कानून के साथ एक प्रदेश में का कानून के रूप में भी समझा जा सकता है।
सरकार से मांग,खजाने पर पड़ेगा असर
सिटी बस महासंघ अब मामले में जीत दर्ज करने के बाद सरकार से मांग कर रहा है कि सरकार उतनी ही पैन्लटी वाहन स्वामियों से ले जितनी परे दूेश में साथ ही 2014 से लेकर अब तक जितनी पैन्लटी राजस्व के रूप् में ली गई है उसे वाहन स्वामियों को वापस किया जाए। अगर सरकार सिटी बस महासंघ की मांग को मानती है तो सरकार के खजाने से लाखों रूपये वाहन स्वामियों की वापस लौटाने होंगे।