रूड़की, (भगवानपुर)-नौ दिन चले अढाई कोस की कहावत से भी बड़ा नमूना देखना हो तो सूबे की भगवानपुर विधानसभा क्षेत्र के रायपुर गांव चले आईए। यहां पेय जल निगम तीन साल में भी एक ओवरहैड टैंक और उसकी पाइप लाईन नहीं बिछा पाया।
सुरेंद्र राकेश जब भगवानपुर के विधायक हुआ करते थे उस दौर में रायपुर गांव को साफ पानी मुहैय्या कराए जाने की कवायद शुरू हुई थी और उन्होने ही गांव में साफ पानी के लिए ट्यूबवैल और ओवरहैड टैंक मंजूर करवाया था। लेकिन उनकी मौत के बाद पेयजल निगम की चाल भी खत्म हो गई।
ट्यूबवैल से तो पानी निकल चुका है लेकिन गांव की जनता आज भी प्यासी ही है। ट्यूबवैल का पानी जमीन से बाहर पाइप में कैद होकर रह गया। पेयजल महकमा आज तक गांव के लिए रहमदिल नहीं हुआ है। नतीजतन रायपुर गांव की जनता उस दूषित पानी को पीने के लिए मजबूर है जो इलाके में मौजूद कारखानों की वजह से गंदा हो गया है।
दरअसल भगवानपुर इंडस्ट्रियल एरिया है। तमाम कारखाने इस इलाकें में लगे हैं। कारखानों की वजह से पूरे क्षेत्र में पानी प्रदूषित हो गया है। आलम ये है कि हैंडपंम्प का पानी थोड़ी देर में ही बर्तन को पीला कर देता है। कारखानों की मेहरबानी से गांव में लगे हैंडपंप के पानी को ग्रामीण पीने को मजबूर हैं लिहाजा डर-डर कर पी रहे हैं। प्रदूषित पानी से फैलने वाली बीमारियां कब गांव पर कहर बरसा दे कोई नहीं जानता।
पेयजल निगम कब अपनी योजना को पूरा करेगा इसके बारे में स्थानीय प्रशासन के पास भी कोई सटीक जानकारी नहीं है। भगवानपुर एसडीएम अभी खत पर ही अटके हुए हैं। उनका कहना है कि महकमें को खत लिखकर तलब किया जाएगा कि आखिर योजना में इतनी लेटलतीफी क्यों हो रही है।
पेयजल निगम के काम करने का ये बेमिसाल नमूना सिर्फ रायपुर गांव में हो ऐसा नहीं है सूबे के कई इलाकों में निगम ने इसी तरह अपनी कार्यशैली के नमूने छोड़ रखे हैं। बहरहाल बड़ा सवाल ये है कि, आखिर महकमा अपना काम किस्तों में क्यों करता है ? अपनी योजना को एकमुश्त निबटा कर जनता को राहत देकर उसकी आंखों का तारा क्यों नहीं बनता।