नैनीताल: जी हां। आपने एकदम सही पढ़ा है। ये अफसरशाही का नतीजा है। उत्तराखंड में अफरशाही हमेशा से सरकार पर हावी रही है। ऐसा कुछ रमेश और बबीता वाल्मीकि के साथ भी हुआ। दरअसल, दोनों ने हाईकोर्ट में न्यूनतम वेतन के लिए लंबे समय तक केस लड़ा। हाईकोर्ट में केस जीतने के बाद ये दोनों सफाईकर्मी जब आदेश के पालन की उम्मीद में डीएम के पास पहुंचे तो, उनको डीएम फटकार लगा दी। नैनीताल के डीएम ने आदेश जारी कर इन दोनों का वेतन 5 रुपये बढ़ाने का आदेश जारी कर दिया, जबकि हाईकोर्ट ने इन्हें न्यूनतम वेतन देने का आदेश दिया था।
रमेश वाल्मीकि 1990 से तहसील में सफाई कर्मचारी का काम करते हैं। बबीता को भी यही काम करते हुए 10 साल से ज्यादा हो गए हैं। इन्होंने कई बार महीने के मात्र 12 सौ रुपये वेतनमान को बढ़ाने की गुहार प्रशासन से लगाई। उन्होंने बताया कि उनके साथ काम करने वाले दूसरे कर्मियों को भी न्यूनतम वेतन मिलता है।
हाईकोर्ट ने दोनों को न्यूनतम वेतन देने का आदेश दिया तो दोनों सफाईकर्मियों को लगा कि उन्होंने इंसाफ की यह जंग जीत ली है। लेकिन, जब वो तत्कालीन जिलाधिकारी विनोद कुमार सुमन ने दोनों को बुलाकर फटकार लगाई और प्रतिघंटे 5 रुपये बढ़ाने का आदेश जारी कर दिया, जो सीधे हाईकोर्ट के आदेश का उल्लंघन था। उनके वकील गणेश कांडपाल ने बताया कि डीएम के आदेश को फिर अदालत में चुनौती दी जाएगी और इंसाफ मिलने तक यह जंग जारी रहेगी।