पिथौरागढ़ के विधानसभा उपचुनावों में प्रकाश पंत की पत्नी और बीजेपी उम्मीदवार चंद्रा पंत की जीत महज 3267 वोटों से हुई है। उम्मीद की जा रही थी चंद्रा पंत एक बड़े मार्जिन से जीत दर्ज करेंगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। मतगणना के दौरान बीजेपी के नेताओं को कई बार माथे पर पसीना आ गया। राजनीतिक गलियारों में चर्चा यही है कि ऐसा क्यों हुआ? निशाने पर राज्य की त्रिवेंद्र सरकार है। क्या मौजूदा सरकार का कामकाज लोगों को प्रभावित करने में कामयाब नहीं रहा है? क्या बीजेपी संगठन अपनी ही सरकार में मतदाताओं में अपनी पकड़ को मजबूत नहीं बना पा रहा है?
पूरी कांग्रेस लगती तो?
ये बड़े सवाल हैं क्योंकि जिस तरह से प्रकाश पंत के निधन के बाद सहानुभूति मिलने की उम्मीद थी वैसा हुआ नहीं। हालात ये हुए कि कांग्रेस उम्मीदवार अंजु लुंठी ने जबरदस्त टक्कर दी। वो भी तब जब सिर्फ हरीश रावत ने ही यहां लंबे समय तक डेरा डाला। अगर कांग्रेस के अन्य नेताओं ने यहां अंजु लुंठी के लिए प्रचार करने में ताकत झोंकी होती तो परिणाम कुछ और हो सकते थे।
कांग्रेस का वोट बैंक सुरक्षित
हालांकि प्रकाश पंत ने भी ये सीट बेहद कम मार्जिन से जीती थी। उन्होंने कांग्रेस के मयूख महर को 2684 वोटों से हराया था। 15 फरवरी 2017 को हुई वोटिंग में 62.7 फीसदी वोट पड़े थे। इनमें से 49.4 फीसदी वोट प्रकाश पंत को मिले थे और 45.4 फीसदी वोट मयूख महर को मिले थे। इस बार के उपचुनावों में चंद्रा पंत को 51.7 फीसदी वोट मिले जबकि अंजु लुंठी को 45.1 फीसदी वोट मिले। इन आंकड़ों से जाहिर है कि कांग्रेस के वोट बैंक न सिर्फ पूरी तरह सुरक्षित है बल्कि मयूख महर के मुकाबले अंजु लुंठी के कमजोर उम्मीदवार होने के बावजूद कांग्रेस के साथ है। वहीं बीजेपी अपने वोट बैंक में मामूली इजाफा कर पाई। वो भी तब जब प्रदेश में बीजेपी की ही सरकार और खुद मुख्यमंत्री प्रचार के लिए पहुंचे थे।

हाल यही रहा तो…
पहले रुड़की, हरिद्वार जैसे नगर निगम और अब पिथौरागढ़ विधानसभा के उपचुनाव के परिणाम बीजेपी के लिए मंथन का विषय हो सकते हैं। इन चुनावों में उसे हार मिली या चुनौती। हैरानी इस बात की है इन सभी चुनावों में कांग्रेस की ओर से हरीश रावत ने बड़ा रोल अदा किया। हरिद्वार और रुड़की में उनकी राजनीतिक रणनीति काम कर रही थी तो पिथौरागढ़ में वो खुद थे। जाहिर है कि हरदा की राजनीति को पूरी तरह खत्म नहीं माना जा सकता है। मोदी लहर में भले ही विधानसभा और लोकसभा चुनावों में हरदा ने हार देखी हो लेकिन यही हाल रहा तो 2022 में राज्य में होने वाला विधानसभा चुनाव बेहद दिलचस्प परिणाम दिखा सकता है।