उत्तराखंड में किसानों के मसले पर राजनीतिक घमासान अब लगभग तय होता दिख रहा है। कांग्रेस के लिए ये मसला उसे राजनीतिक चर्चाओं में बने रहने का मसाला दे रहा है तो डबल इंजन की त्रिवेंद्र सरकार के लिए मुसीबतों का अंदेशा भी। फिलहाल सरकार मंथन में लगी है और विपक्ष मैदान में डटा है।
बजट सत्र से ही इस मसले पर त्रिवेंद्र सरकार को घेरने की कोशिशों में लगी कांग्रेस अब पूरी तरह मैदान में उतर कर सरकार से जवाब मांगने के मूड में नजर आने लगी है। कांग्रेस की कोशिश है कि इस मसले के जरिए वो सरकार पर दबाव बना सके। कांग्रेस का थिंक टैंक इस बात से भी वाकिफ होगा कि किसानों की दुर्दशा को लेकर देश भर में जो आक्रोश है उसे उत्तराखंड में भी बीजेपी के खिलाफ इस्तमाल किया जा सकता है। यही वजह है कि कांग्रेस 6 जुलाई को आंदोलन का कार्यक्रम बना रही है।
किसानों का मसला संवेदनशील और सीधा आम आदमी से जुड़ता है। जाहिर है कि इस मसले पर सरकार को हर कदम सोच समझ कर रखना होगा। हालांकि मुख्यमंत्री के तेवरों से साफ है कि वो किसानों की कर्ज माफी की सोच को जेहन में नहीं रखते हैं। कुछ पुराने बयानों में वो ये कह चुकें हैं कि अगर किसानों को नया कर्ज लेना है तो उनकी सरकार दो फीसदी ब्याज पर दे सकती है।
उत्तराखंड में डबल इंजन की सरकार बनाने के बाद बीजेपी ने पूरी कोशिश की है कि किसानों के मसले पर उसे किसी तरह का विरोध न झेलना पड़े। गन्ना किसानों के बकाया भुगतान 15 दिनों में कराने का वादा भी इसी कोशिश का हिस्सा था। हालांकि ये बात और है कि सरकार अपने वादे को पूरा नहीं कर पाई। इस सब के बीच एक खौफनाक सच ये भी है कि राज्य में किसान की खुदकुशी का मामला पहली बार इसी सरकार में सामने आया है। जाहिर है कि लोग इसका जवाब सरकार से मांगेगे।