दुनिया भर के शेयर बाजार में मची अफरा-तफरी से इस संकट के और गहराने के संकेत हैं। केवल एक दिन में क्रूड ऑयल की कीमतें 70 डॉलर प्रति बैरल से 98 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई हैं जो आने वाले दिनों में और अधिक बढ़ सकती हैं।
रूस-यूक्रेन का संकट एक बड़े युद्ध की ओर बढ़ता दिख रहा है। यदि मामले का कोई शांतिपूर्ण समाधान नहीं निकला तो पूरी दुनिया पर इसके गंभीर परिणाम दिखाई पड़ेंगे। इससे पूरी दुनिया में ऊर्जा संकट गहरा सकता है। कोरोना के झटके से बाहर निकलने की कोशिश करती अर्थव्यवस्था एक बार फिर गहरे संकट में फंस सकती है।
इससे देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतें एक बार फिर बेलगाम हो सकती हैं। वर्तमान में चल रहे चुनावों के कारण शायद कुछ दिनों के लिए तेल कीमतें न बढ़ें, लेकिन चुनाव बीतते ही पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी होना तय माना जा रहा है।
भारत अपनी तेल जरूरतों का 85 फीसदी और प्राकृतिक गैस जरूरतों का 56 फीसदी आयात के माध्यम से ही पूरा करता है। ऐसे में यदि तेल-गैस की कीमतें बढ़ती हैं तो भारत पर आर्थिक दबाव बढ़ जाएगा।
उसे तेल कीमतों के रूप में ज्यादा विदेशी मुद्रा चुकानी होगी, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आएगी। इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर की कीमतें बढ़ेंगी और रुपये की कीमतों में गिरावट आएगी। रुपये की कीमतों में गिरावट महंगाई बढ़ने का बड़ा कारण बन सकता है।