देहरादून : प्रदेश सरकार सजायाफ्ता मुजरिमों को पैरोल देने के नियमों को और सख्त करने जा रही है। तकरीबन पांच माह से चल रही कवायद के बाद अब इसे अंतिम रूप दिया जा रहा है। अब इस पत्रावली को न्याय में परीक्षण के लिए भेजा जा रहा है। इस बार शासन ने कैदियों को अपराध के हिसाब से अलग-अलग श्रेणियों में बांटते हुए उसी के मुताबिक पैरोल देने का प्रस्ताव रखा है।
जेलों में सजा काट रहे कैदियों को पैरोल पर कुछ दिनों के लिए जेल से बाहर आने का प्रावधान हैं। विशेष तौर पर पैरोल कैदियों को अपने परिजनों का इलाज कराने, खेती से जुड़े कार्य करने, मकान बनाने आदि के लिए दिया जाता है। हालांकि, ठोस नियम न होने के कारण इसका दुरुपयोग भी होता रहा है। राज्य में भी सजायाफ्ता कैदियों के पैरोल देने के मामले में काफी बवाल होता रहा है।
यह देखने में आया है कि कई मुजरिम पैरोल की ठोस नियमावली न होने का फायदा उठाते हुए महीनों बाहर रहे। इसमें हत्या जैसे संगीन मामलों में आजीवन कारावास की सजा काट रहे कैदी तक शामिल रहे। पिछली सरकार में कैदियों की पैरोल को लेकर जम कर हंगामा हुआ था। इस पर हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर हुई। कोर्ट के निर्णय के बाद प्रदेश में उत्तर प्रदेश से इतर अलग नियमावली बनाने पर काम शुरू हुआ। यह प्रक्रिया अप्रैल में आरंभ हुई थी।
अब इसे अंतिम रूप दिया जा रहा है। सूत्रों की मानें तो पैरोल के नियमों को खासा सख्त करने की तैयारी है। अभी तक कैदियों को 15 दिन तक का पैरोल जिलाधिकारी, एक माह तक का पैरोल मंडलायुक्त और इससे अधिक का पैरोल मुख्यमंत्री स्तर से स्वीकृत होता था। इस बार इस व्यवस्था में बदलाव किया जा रहा है। इसके अलावा अपराधियों को भी अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित किया जाएगा। गंभीर अपराध वाले कैदियों के पैरोल के नियम थोड़े सख्त रखने की तैयारी है। इसके अलावा जिन कैदियों ने अपनी सजा को उच्च न्यायालयों में चुनौती दी है, उनके नियम भी थोड़े अलग हो सकते हैं।
प्रमुख सचिव गृह आनंद वर्द्धन का कहना है कि अभी पैरोल के लिए नियमावली बनाई जा रही है। न्याय व विधायी से परामर्श लेने के बाद इस पर आगे की कार्यवाही होगी।