देहरादून: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं होने के कारण 30 बच्चों की दर्दनाक मौत के बाद उत्तराखंड कितना सतर्क हुआ इसकी पोल गुरुवार देर रात खुल गई। सूबे के सबसे बड़े दून अस्पताल के हालात भी बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज गोरखपुर जैसे ही नजर आए…सरकारी सिस्टम बेहद लाचार दिखा…ऑक्सीजन सिलेंडर न होने की वजह से बेहोश पुलिसकर्मियों, बच्चों एवं अन्य लोगों को दूसरे अस्पताल भेजना पड़ा। यह हाल राजधानी के हैं तो प्रदेश के दूरस्थ पर्वतीय इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं के हाल खुद समङो जा सकते हैं।
सरकार ने सबसे बड़े दून अस्पताल को मेडिकल कॉलेज में तब्दील तो कर दिया, लेकिन हालात पहले से बदतर हो चुके हैं। दून मेडिकल कॉलेज में मशीनें खराब होने, स्टॉफ की कमी से उपचार न मिलने, दवाएं न होने समेत तमाम खामियों का अंबार है, लेकिन राज्य सरकार को शायद इससे कोई सरोकार नहीं। गोरखपुर हादसे के बाद जब उत्तराखंड में भी सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल उठे तो दून मेडिकल कॉलेज अपने यहां पर्याप्त ऑक्सीजन का दावा कर रहा था, लेकिन दिलाराम चौक के पास हुए हादसे के बाद अस्पताल प्रशासन के साथ ही स्वास्थ्य विभाग के दावों की पोल खुल गई।
जीवन व मृत्यु के बीच जूझते बेहोश लोगों को गंभीर परिस्थितियों में ऑक्सीजन की कमी के कारण सीएमआइ, मैक्स और श्री महंत इंद्रेश अस्पताल रेफर कर उपचार दिलाना पड़ा। गनीमत रही कि हादसे के शिकार सभी लोग अन्य अस्पताल पहुंचने के बाद सकुशल हैं, वरना दून मेडिकल कॉलेज की लापरवाही किसी की जान पर भारी पड़ सकती थी।
हालाकि इस मामले पर मुख्यमंत्री के स्वास्थ्य सलाहकार डॉ नवीन बलूनी ने सफाई देते हुए बताया कि अस्पताल में सारी सुविधाए थी लेकिन बेड की कमी थी.