दरअसल सरकार ने साल 1993 के आईएसआई नियमों में बदलाव करके नए 2015 यूरोपियन मानक को लागू किया है। इसके तहत अब हेलमेट मैन्युफैक्चरर्स को नई लैब लगानी होगी। सरकार के इस नए नियम से हेलमेट मैन्युफैक्चरिंग महंगी हो जाएगी और इसका असर हेलमेट की कीमत पर पड़ेगा।
5 से 10 हजार हो सकती है कीमत
हेलमेट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के जनरल सेक्रेट्री के अनुसार सरकार की तरफ से नई लैब लगाने के लिए 15 अक्टूबर की डेडलाइन तय की गई है। हालांकि नई लैब लगाने के लिए देशभर से केवल 40 रजिस्ट्रेशन आएं हैं, जबकि देश में करीब 250 हेलमेट मैन्युफैक्चरर्स हैं। इसका सीधा मतलब है कि हेलमेट की मैन्युफैक्चरिंग कुछ कंपनियों तक सीमित हो जाएगी। साथ ही नई लैब लगाने में खर्च भी ज्यादा आएगा। ऐसे में 15 अक्टूबर के बाद से देश में हेलमेट की कीमत 5 हजार से 10 हजार रुपए तक हो सकती है।
कंपनियां अपनी मनमर्जी दाम पर हेलमेट का रेट तय करेगी और बेचेगी
आपको बता दें कि पुराने नियमों के तहत हेलमेट फैक्ट्री के साथ ही एक टेस्टिंग लैब बनानी होती थी, जहां इनका परीक्षण किया जाता था। इस लैब पर 6 से 7 लाख रुपए का खर्च आता था। हालांकि अब नए नियमों के अंतर्गत यूरोपियन टेस्टिंग लैब लगानी होगी। इस पर 1 से 2 करोड़ का खर्च आएगा। ऐसे में एक स्मॉल स्केल उद्योग चलाने वाले के लिए नई लैब लगाना संभव नहीं होगा और इस तरह हेलमेट मैन्युफैक्चरिंग का काम कुछ चुनिंदा कंपनियों तक सीमित रह जाएगा। ऐसे में ये कंपनियां अपनी मनमर्जी दाम पर हेलमेट का रेट तय करेगी और बेचेगी.