देहरादून, संवाददाता- नोटबंदी के फरमान को एक पखवाड़ा बीत चुका है। सरकार हर रोज नियम बना रही है बावजूद इसके हालात नहीं सुधर रहे। नोटबंदी के असर ने जहां शादियों के घरों की रौनक छीन ली है तो वहीं बैंक और एटीएम के बाहर कतार कम होने का नाम नहीं ले रही है। देहरादून के बाजार से ग्राहक गायब है तो सिडकुल में कारखाने बंद होने की कगार पर पहुच गए है। 15 दिन बीतने के बावजूद हालात जस के तस हैं। जनता को समझ मे नहीं आ रहा है कि कैश की कमी नहीं होने के सरकारी संदेश के बावजूद बैंक और एटीएम के बाहर लाइन क्यों बनी हुई है। अगर कैश आ रहा है तो आखिर वो कैश खप कहां रहा है। नोट बदलवाना हो या जमा करवाना हो हर बार भीड़ से सामना हो रहा है। जब तक नंबर आ रहा है तब तक या तो कैश खत्म हो जा रहा है या फिर
बैंक का टाइम पूरा हो जा रहा है। सबसे ज्यादा दिक्कत राज्य के उन पहाड़ी हिस्सों में हो रही है जहां आज तक न तो सड़क की सहूलियत है न बिजली की। ऐसे में वहां बैंकिंग की सहूलियत होना मुश्किल ही नही नामुमिकिन भी है। कहीं है भी तो वो को-ओपरिटिव बैंक की मिनी बैक शाखाए है जिनको पुराने नोट लेने की इजाजत नहीं है। ऐसे में दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों के पशु पालकों और मंहगी नगदी फसल उगाने वालों के सामने संकट पैदा हो गया है। अपनी नकदी लेकर ग्रामीण मीलों का पैदल सफर कर बैंक वाले कस्बों की ओर रुख कर रहे है लेकिन बैंक के बाहर की कतारें उसका हौंसला तोड़ कर रख दे रही हैं। दूर पहाड़ों की आवाज कोई नहीं सुन रहा है। महानगरों में काम करने वाले पहाड़ के नौजवानों को अपनी छुट्टी में कटौती कर वापस घरों की ओर लौटना पड़ रहा है ताकि मां-बाप के पास रखी पूंजी बर्बाद होने से बच जाए। हालांकि जनता जहां नोटबंदी के फैसले को जहां बड़ा कदम बता रही हैं वहीं अव्यवस्था को लेकर खासी नाराज भी हो रही हैं। कई लोगों का मानना है नोटबंदी से या तो बहुत अच्छा होगा या फिर बहुत खराब ,जो भी होगा उम्मीद से ज्यादा होगा फिर चाहे अ्च्छा हो या बुरा।