आशीष तिवारी। अमित शाह के उत्तराखंड आने से पहले जिस तरह की उम्मीद राज्य के भाजपा नेताओं को रही होगी शायद उतनी उम्मीदें अमित शाह पूरी नहीं कर पाए। दरअसल अमित शाह अपनी आक्रामक शैली के भाषणों के लिए जाने जाते हैं। उत्तराखंड में पिछले दिनों हुई सियासी उठापटक के दौरान भाजपा नेताओं ने राज्य की कांग्रेस सरकार और मुख्यमंत्री हरीश रावत को घेरा था। उम्मीद थी कि अमित शाह भी हरीश रावत को घेरने की बड़ी तैयारी करके आए होंगे लेकिन अपने तकरीबन 15 से 20 के संबोधन में अमित शाह अधिकतर वक्त नोटबंदी को सही साबित करने और काले धन के मसले पर ही बोलते रहे। अमित शाह ने हरीश रावत पर भाजपा नेताओं की उम्मीद से कम प्रहार किए। ना स्टिंग का जिक्र हुआ और ना ही बागियों का। सवाल ये भी उठ रहें हैं कि क्या स्टिंग औऱ बागियों के मसले पर किसी भी विवाद से बचने के लिए अमित शाह ने इन मुद्दों से दूरी बना ली।
अमित शाह की देहरादून में हुई रैली एक तरह से बीजेपी के चुनावी कार्यक्रम का औपचारिक उद्घाटन थी। अमित शाह ने देहरादून के इसी कार्यक्रम से बीजेपी की परिवर्तन यात्रा को हरी झंडी भी दिखाई। अमित शाह जिस सत्ता के परिवर्तन की बात कह रहे थे जाहिर तौर पर उस सत्ता का जिक्र उन्हें करना था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हरीश रावत पर अमित शाह उतने ही हमलावर रहे जितना औपचारिकता के लिए जरूरी था।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो कम भीड़ भी इसका कारण हो सकती है। अमित शाह का मन शायद जनसभा की कम भीड़ को देखकर खराब हुआ हो। फिलहाल अमित शाह का आना बीजेपी के लिए उतना फाएदेमंद साबित होता नहीं दिख रहा जितनी भाजपा नेताओं को थी। हालांकि अभी और रैलियां बची हैं और शायद बीजेपी देहरादून की कसर उन रैलियों में पूरी कर पाए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)