उत्तराखंड की टिहरी झील में उत्तराखंड की ‘इज्जत’ डूब गई है। जी, सुनने में अटपटा लग सकता है, लेकिन टिहरी झील के ठहरे पानी में तैरते-तैरते ‘इज्जत’ शायद थक गई होगी। लिहाजा उसके पास डूबने के अलावा कोई चारा बचा नहीं होगा। फिर क्या फर्क पड़ता है कि उत्तराखंड की पूरी कैबिनेट जिस मरीनामय इज्जत के साथ टिहरी झील के पानी में हिचकोले खाती रही उस कैबिनेट ने एक बार भी पलट कर न झील को देखा, न लहरों को देखा और न ही लहरों पर थिरकती उम्मीदों को देखा।
हो सकता है कि बदलते दौर में आवाम की आंखें कुछ कमजोर हो चली हो लेकिन याद्दाश्त कमजोर नहीं होगी ये तय है। तो लौटिए उस दौर में जब ये मरीना और झील का रिश्ता तय हो रहा था। कहते हैं कि उस वक्त भी कैबिनेट में बैठे एक शख्स ने इसी मरीना को टिहरी झील के पानी में उतारने से पहले काफी मोटा ‘बोझ’ रखवाया और फिर मरीना को झील में उतारने के फैसले पर मुहर लगी। वैसे मरीना की कीमत तकरीबन चार करोड़ रुपए के करीब थी। ‘बोझ’ के माएने तो समझते ही होंगे आप? उत्तराखंड में पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर इज्जत का तार तार होना ही टिहरी की झील में मरीना का डूब जाना है।
तो फिर इतनी मगज़मारी से क्या फायदा और लौट आइए उसी दौर में जिसे प्रचंड बहुमत वाली ‘57 इंच’ की सरकार जीरो टालरेंस का दौर कहती है। कुछ दिनों पहले तक इसी टिहरी झील में सबमरीन्स के टिकट बेच कर डूबी हुई सभ्यता को नजारे कराने की तैयारी हो रही थी, तो लगे हाथ याद रखिए कि मरीना ने अपने तीन साल के तैरते हुए दौर में शायद एक हजार रुपए भी नहीं कमाए होंगे। दो साल से तो दौर भी वही है जो अभी है।
फिर टिहरी के पानी को चुल्लू में भर लीजिए और ….
घबराइए नहीं, आपसे डूबने के लिए नहीं कहेंगे, या फिलहाल नहीं कहेंगे। तो टिहरी झील के पानी को चुल्लू में लीजिए और अपनी आंखों पर तेज छींटे मारिए। हालिया दौर में कहानियां, सपने, उम्मीदें सब सुनहरे से हैं। मरीना बोट को शायद पता चल गया होगा कि इसी टिहरी के पानी में सूबे की सियासत अब सी प्लेन उतारने की तैयारी में है। सुनना भी अब सुनहरा सा हो गया न? हम बताना भूल गए थे। पर सच यही है कि सबकुछ सुनहरा सा है। तो मान लेना चाहिए कि टिहरी झील को अब मरीना बोट की जरूरत नहीं रही होगी। लिहाजा उसने डूबना ही सही समझा।
अब जल्दी जल्दी याद कीजिए, टिहरी झील, मरीना बोट, कैबिनेट मंत्री, भारी बोझ, कैबिनेट मीटिंग, सबमरीन्स और सी प्लेन।
अब ठंडी सांस लीजिए और गर्म सांस छोड़िए।
कहीं आस पास पानी हो तो फिर चुल्लू में भरिए….आगे क्या करना है ये आपको पता है….
इज्जत डूब गई….अब उसे रस्सियां डालकर फिर निकाल रहें हैं। ऐसे ही होगा पर्यटन से विकास।