देहरादून- महेंद्र सिंह धौनी से लेकर उनमुक्त चंद और रिषभ पंत तक में अपना हीरो खोजने वाले उत्तराखंड के क्रिकेट प्रेमियों को सबसे नई क्रिकेट स्टार मिली एकता बिष्ट के रूप में। एकता बिष्ट आज महिला क्रिकेट जगत में जाना-पहचाना नाम हैं। उन्होंने इस साल इंग्लैंड में हुए महिला विश्व कप में अपनी घूमती गेंदों का जलवा इस तरह से दिखाया, जैसा भारत के शीर्ष स्पिनर रविचंद्रन अश्विन और रवींद्र जडेजा भी इंग्लैंड जाकर नहीं दिखा सके थे। आइसीसी महिला विश्व कप 2017 में भारतीय महिला क्रिकेट टीम की सफलता की दास्तां लिखने वाली एकता बिष्ट के नक्शेकदम पर चलकर उत्तराखंड की एक और प्रतिभा अपना लोहा मनवाने को तैयार है। महज 16 साल की उत्तराखंड की क्रिकेटर कंचन परिहार ने उत्तर प्रदेश की अंडर-19 टीम में अपनी जगह बनाई है।
एकता के बाद कंचन पर रहेगी उत्तराखंड की नजर
चार नवंबर से कंचन पर उत्तराखंड के कई खेल प्रेमियों की निगार रहेगी। कंचन उत्तराखंड से यूपी अंडर-19 महिला की टीम में चुनी गई इकलौती खिलाड़ी हैं। इसके अलावा सबसे खास बात यह है कि कंचन की उम्र अभी महज 16 साल है और इस टीम की सबसे युवा सदस्य भी हैं।
कंचन के कोच और पिता गोपाल परिहार बताते हैं कि कानपुर में यूपी अंडर-19 महिला टीम के ट्रेनिंग कैंप में कंचन की फिटनेस, दम-खम और तकनीक को तारीफ मिली है। इस वजह से उनके पास कम उम्र में भारत की महिला अंडर-19 टीम में जगह बनाने का सुनहरा मौका भी है। उम्मीद की जा सकती है कि कि कंचन भी एकता के नक्शेकदम पर चल पड़ी हैं।
एकता जैसी ही कठिन थी इनके संघर्ष की डगर
एकता की तरह कंचन के पास भी काफी अरसे तक प्रैक्टिस के लिए एक स्टेडियम या स्तरीय पिच तक नहीं रही। कंचन की सफलता इसलिए अहम है, क्योंकि इनके 20-25 किमी के इलाके में ढंग का स्टेडियम नहीं है, जहां ये प्रैक्टिस कर सकें। वहां खेल के दो-तीन छोटे मैदान थे, जिनपर पूजास्थल या स्कूली इमारतों के बन जाने से उनमें भी खेलने लायक जगह नहीं रही। इन मैदानों में केवल लड़के ही खेल का अभ्यास किया करते थे। ऐसे में इन्होंने ज्यादातर समय आंगन में ही अभ्यास किया। इसके बाद कंचन के पिता गोपाल परिहार ने खेती की जमीन पर ही प्रैक्टिस पिच बनवाई और नेट डलवाकर इन्हें अभ्यास करवाया।
नंगे पैर पहाड़ चढ़ने से कम नहीं इनकी उपलब्धि
कंचन ने उत्तर पहले प्रदेश और उत्तराखंड की करीब 250 लड़कियों के बीच अपनी जगह बनाई। इसके बाद अगला पड़ाव यूपी अंडर-19 के अंतिम 31 खिलाड़ियों का था और अब वह अंतिम 16 खिलाड़ियों में भी चुनी गई है। कंचन विकेटकीपिंग के साथ ही ओपनर बल्लेबाज की भूमिका निभाती हैं। वह कलात्मक शैली के साथ ही आक्रामक अंदाज से बल्लेबाजी करने में भी माहिर हैं। कंचन के अलावा उत्तराखंड से यूपी की टीम में आवेदन करने वाली उनकी साथी खिलाड़ी ज्योति भी थीं।
रुद्रपुर की भान्वी रावत और काशीपुर की बसंती भी अंतिम-31 खिलाड़ियों में अपनी जगह बनाने में सफल रहीं। बसंती को एकता बिष्ट के कोच लियाकत अली ट्रेन कर रहे हैं। उन्होंने उम्मीद जताई है कि आने वाले दिनों में एकता के बाद बसंती भी टीम इंडिया में अपनी जगह बनाने में सफल रहेंगी। इन सभी के पास महंगी कोचिंग के लिए संसाधन नहीं हैं, लेकिन इन्होंने अपने रास्ते खुद तराशे हैं।
अपने पिता के सपनों को पूरा करती बेटियां
मध्यवर्गीय परिवार से निकलीं उत्तराखंड की इन लड़कियों ने घरेलू काम के साथ ही पढ़ाई और खेल को साधने का मुश्किल काम दक्षता के साथ किया है। इन लड़कियों ने कम समय में ही क्रिकेट के गुर सीखकर उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और दिल्ली की नामी क्रिकेट अकादमियों की छात्राओं को पछाड़कर यहां तक पहुंचने का काम किया है।
कंचन और ज्योति के इस मुकाम तक पहुंचने में कंचन के पिता गोपाल सिंह परिहार और इन दोनों छात्राओं के अध्यापक रहे मोहन चंद्र खोलिया का बड़ा हाथ है। गोपाल सिंह परिहार यूनिवर्सिटी लेवल पर क्रिकेट खेले और संसाधनों के अभाव में आगे नहीं जा सके। गोपाल ने क्षेत्र के कई युवाओं को क्रिकेट के गुर सिखाए, लेकिन उनकी बेटी ने ही अपने पिता के सपने को पूरा करने का बीड़ा उठाया है। फिलहाल गोपाल बिंदुखत्ता क्षेत्र में ही क्रिकेट अकादमी चलाने का काम करते हैं।