जिस दिन राष्ट्रपति महात्मा गांधी को नाथूराम गोडसे ने गोली मारी थी इतिहास के पन्नों में वो तारीख आज भी दर्ज है और भारता देश का बच्चा बच्चा जानता है कि गांधी जी की हत्या किसने की थी। आज देश के बापू कहलाए जाने वाले महात्मा गांधी जी की पुण्यतिथि है। सत्य और अहिंसा की राह पर चलते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करने वाले बापू को ये सीख उनकी मां से मिली थी।
अंतिम समय उनके मुख से ‘हे राम’ शब्द निकले थे
30 जनवरी 1948 को शाम 5 बजकर 17 मिनट पर नाथूराम गोडसे और उनके सहयोगी गोपालदास ने बिरला हाउस में गांधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। गांधी जी को तीन गोलियां मारी गयी थी। ऐसा कहा जाता है कि अंतिम समय उनके मुख से ‘हे राम’ शब्द निकले थे जो की उनकी पोती आभा ने सुने थे। उनकी मृत्यु के बाद नई दिल्ली के राजघाट पर उनका समाधि स्थल बनाया गया है।
क्या कहा गोडसे ने?
लाल किले में चले मुकदमे में न्यायाधीश आत्मचरण की अदालत ने नाथूराम गोडसे ने अदालत में गोडसे ने स्वीकार किया कि उन्होंने ही गांधी को मारा है. अपना पक्ष रखते हुए गोडसे ने कहा- गांधी जी ने देश की जो सेवा की है, उसका मैं आदर करता हूं. उनपर गोली चलाने से पूर्व मैं उनके सम्मान में इसीलिए नतमस्तक हुआ था लेकिन जनता को धोखा देकर पूज्य मातृभूमि के विभाजन का अधिकार किसी बड़े से बड़े महात्मा को भी नहीं है. गांधी जी ने देश से छल कर इसके टुकड़े किये. चूंकि ऐसा न्यायालय और कानून नहीं था जिसके आधार पर ऐसे अपराधी को दंड दिया जा सकता, इसीलिए मैंने गांधी को गोली मारी.
आठ लोग बनाये गये आरोपी
गांधीजी की हत्या के बाद इस मुकदमे में नाथूराम गोडसे सहित आठ लोगों को आरोपी बनाया गया था. इनमें नाथूराम गोडसे, गोपाल गोडसे, नारायण आप्टे, मदनलाल पाहवा, विष्णु रामकृष्ण करकरे, शंकर किस्तैया, दिगंबर बड़गे, विनायक दामोदर सावरकर का नाम शामिल है. इन लोगों में से दिगंबर बड़गे को सरकारी गवाह बनने के कारण बरी कर दिया गया. वहीं शंकर किस्तैया को उच्च न्यायालय से माफी मिल गई. जबकि सावरकर के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिलने की वजह से बरी कर दिया गया. बाकी बचे पांच अभियुक्तों में से गोपाल गोडसे, मदनलाल पाहवा और विष्णु रामकृष्ण करकरे को आजीवन कारावास हुआ था, जबकि नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को 15 नवंबर 1949 को फांसी पर लटका दिया गया.
महात्मा गांधी की जीवनी
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म गुजरात के पोरबंदर में 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था। इनके पिता का नाम करमचंद गांधी और माता का नाम पुतलीबाई था। ब्रिटिश हुकूमत में इनके पिता पोरबंदर और राजकोट के दीवान थे। महात्मा गांधी का असली नाम मोहनदास करमचंद गांधी था और यह अपने तीन भाइयों में सबसे छोटे थे। गांधी जी का सीधा-सरल जीवन इनकी मां से प्रेरित था। गांधी जी के जीवन पर भारतीय जैन धर्म का गहरा प्रभाव पड़ा, जिसके कारण वह सत्य और अहिंसा में अटूट विश्वास करते थे और आजीवन उसका अनुसरण भी किया।
बापू ने लंदन में पूरी की बैरिस्टरी की पढ़ाई
गांधी जी की प्रारम्भिक शिक्षा पोरबंदर में हुई थी। पोरबंदर से उन्होंने मिडिल स्कूल तक की शिक्षा प्राप्त की, इसके बाद इनके पिता का राजकोट ट्रांसफर हो जाने की वजह से उन्होंने राजकोट से अपनी बाकी की शिक्षा पूरी की। साल 1887 में राजकोट हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की और आगे की पढ़ाई के लिए भावनगर के सामलदास कॉलेज में प्रवेश हासिल की लेकिन घर से दूर रहने के कारण वह अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाएं और अस्वस्थ होकर पोरबंदर वापस लौट गए। 4 सितम्बर 1888 को इंग्लैण्ड के लिये रवाना हुए। गांधीजी ने लंदन में लंदन वेजीटेरियन सोसायटी की सदस्यता ग्रहण की और इसके कार्यकारी सदस्य बन गये। गांधी जी लंदन वेजीटेरियन सोसाइटी के सम्मेलनों में भाग लेने लगे और पत्रिका में लेख लिखने लगे। यहां 3 सालों (1888-1891) तक रहकर अपनी बैरिस्टरी की पढ़ाई पूरी की और सन् 1891 में वापस भारत आ गए।इंग्लैंड पढ़ाई के दौरान उन्हें कई बार अपमान सहना पड़ा था फिर भी वो रास्ते से अडिग नहीं हुए। महात्मा गांधी के जीवन से जुड़ी ऐसी ही कई घटनाएं हैं जो प्रेरित करने के साथ ही आश्चर्यचकित भी करती हैं।
गांधी जी की शादी 13 साल की उम्र में कस्तूरबा से हुआ था
गांधी जी का विवाह सन् 1883 में मात्र 13 वर्ष की आयु में कस्तूरबा जी से हुआ था। लोग उन्हें प्यार से ‘बा’ कहकर पुकारते थे। कस्तूरबा गांधी जी के पिता एक धनी व्यवसायी थे। शादी से पहले तक कस्तूरबा पढ़ना-लिखना नहीं जानती थीं। गांधी जी ने उन्हें लिखना- पढ़ना सिखाया। एक आदर्श पत्नी की तरह बा ने गांधी जी का हर एक काम में साथ दिया। साल 1885 में गांधी जी की पहली संतान ने जन्म लिया, लेकिन कुछ समय बाद ही निधन हो गया था।