देहरादून- उत्तराखंड की ये कैसी विवशता है, जब सारा देश अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की जयंती मनाते है। जय जवान जय किसान का नारा देने वाले देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को उनके जन्म की तारीख पर याद करते हैं। उत्तराखंडी को दो अक्टूबर के दिन उस मुज्जफरनगर कांड की याद आ जाती है, जिसे 1994 में खाकी ने अंजाम दिया। आजाद भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ होगा जब लोकतंत्र को उसके पहरूओं ने अपनी हरकतों से शर्मशार कर दिया हो।
हर दो अक्टूबर को आम उत्तराखंडी को उन ज्ञात-अज्ञात आंदोलनकारियों की याद आ जाती है जिन्होंने 1994 में रामपुर तिराहे में उत्तर प्रदेश पुलिस का रक्षसों से भी बदत्तर वहशी दरिंदों वाला रूप देखा था। रामपुर तिरहे पर बना राज्य आंदोलनकारियों का स्मारक उन्ही अमर राज्य आंदोलनकारियों की शहादत की याद दिलाता हैं।
वो स्मारक कहता है कि उत्तराखंड खैरात में नहीं मिला है। ये राज्य बर्बर पुलिस की संगीनें सीने पर सहकर बना है। राज्य की बुनियाद को आंदोलनकारियों ने अपने लहू से सींच कर तर किया है। मातृशक्ति ने जो कुर्बान किया है उसका मोल कभी भी कोई अदा नहीं कर सकता, तब ये उत्तराखंड बना है।
मुज्जफरनगर कांड को हुए 23 साल पूरे हो चुके हैं। जबकि उत्तराखंड को बने हुए 17 साल बावजूद इसके रामपुर तिराहे कांड के दोषी खुले आम घूम रहे हैं। तमाम दावे करने वाली और सत्ता की मलाई चाटने वाली सूबे की सभी सरकारें अब मौन साध गई है। हालांकि कभी सरकारों ने दावा किया था कि, हम मुजफ्फरनगर कांड के दोषियों को सजा दिलाए बगैर चैन से नहीं बैठेंगे।
लेकिन अब 17 साल बाद सत्ता स्मृति धंधली पड़ गई है, अब न वो बुआ सिंह को पहचानती हैं न अनंन्त कुमार को। सत्ता की रगों का खून इन 17 सालों में पानी बन चुका है लेकिन आंदोलन की जंग लड़ने वाली पीढी को हर घटना क्रम याद है। पौ़ड़ी से लेकर खटीमा और मसूरी से लेकर मुजफ्फरनगर का हर कांड उनकी स्मृतियों में जिंदा है।
बहरहाल मुजफ्फरनगर कांड की 23 वीं बरसी पर khabaruttarakhand.com उन तमाम ज्ञात-अज्ञात अमर शहीदों को नमन करते हुए अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है जिन्होने खुद को फ़ना कर इस राज्य को भारत के मानचित्र पर उकेरा। ताकि पहाड़िया आबाद रहें और आने वाली पीढ़िया खुशहाल।