देहरादून – डबल इंजन के दौर में उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार को रक्षा मंत्रालय से ऐसी उम्मीद नहीं रही होगी कि उसकी फरियाद को इस तरह ठुकरा दिया जाएगा। जी हां केंद्रीय रक्षा मंत्रालय ने वीर चंद्र सिंह गढ़वाली राजकीय मेडिकल कॉलेज श्रीनगर गढ़वाल और निर्माणाधीन राजकीय मेडिकल कॉलेज अल्मोड़ा को अपने हाथ में लेने से मना कर दिया है।
मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो मंत्रालय ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को चिट्ठी के जरिए अपनी मंशा को जाहिर करते हुए लिखा है कि सशस्त्र सेना चिकित्सा सेवा राज्य के दोनों मेडिकल कॉलेजों के प्रबंधन का भार उठाने में सक्षम नहीं है।
दरअसल सूबे की टीएसआर सरकार ने प्रदेश में सरकारी मेडिकल कॉलेजों के भारी-भरकम खर्च देखते हुए इन्हें सेना के सुपुर्द करने का मन बनाया था। मौजूदा समय में राज्य के तीन सरकारी मेडिकल कॉलेजों के संचालन में ही सरकारी खजाने पर करीब डेढ अरब बोझ पड़ रहा है। श्रीनगर मेडिकल कॉलेज के संचालन में सालाना 54 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं।
वीर चंद्र सिंह गढ़वाली राजकीय आयुर्विज्ञान एवं शोध संस्थान श्रीनगर को संचालित करने को लेकर सेना के साथ सहमति भी बन गई थी। सेना श्रीनगर के साथ ही अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेजों को संचालित करती तो राज्य को बड़ी राहत मिलना तय था। इसके लिए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने बीती 24 अप्रैल को तत्कालीन रक्षा मंत्री अरुण जेटली को पत्र लिखकर उक्त दोनों मेडिकल कॉलेजों को सशस्त्र सेना चिकित्सा विद्यालय के रूप में रक्षा मंत्रालय से संचालित करने का अनुरोध किया था।
लेकिन अब बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री के अनुरोध के जवाब में बतौर रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने ही उक्त दोनों मेडिकल कॉलेजों के संचालन में असमर्थता जता दी। 16 अगस्त को जेटली की ओर से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को पत्र भेजा गया था। पत्र में उन्होंने कहा कि उक्त मामले की जांच कराई गई। पत्र में कहा गया कि सशस्त्र सेना चिकित्सा सेवा में प्रशिक्षित प्राध्यापकों, गैर अध्यापन कर्मचारियों और नर्सों की सीमित उपलब्धता है।
बताया जा रहा है कि पत्र में खेद जताते हुए कहा गया कि सशस्त्र सेना चिकित्सा सेवा राज्य के उक्त दोनों मेडिकल कॉलेजों के प्रबंधन का अतिरिक्त भार वहन करने और प्राध्यापक और कर्मचारी प्रदान करने में सक्षम नहीं है। लिहाजा रक्षा मंत्रालय की इस चिट्ठी ने राज्य सरकार माथे पर शिकन की लकीरें खींच दी है। सूत्रों की माने तो इस चिट्ठी और इस पहल पर बात करने से भी सरकार कतरा रही है।