देहरादून – मौत से 10 दिन तक मुड़भेड़ करने वाला सूबे का बहादुर बेटा हवलदार नरेंद्र बिष्ट अब उत्तराखंड के पास नहीं है। पहाड़ से मैदान तक उदास है उत्तराखंड तो गुमसुम सा है। सरहदों से लगातार ताबूत उसके आंगन में उतर रहे हैं। आखिर शहीदों के परिजनो को क्या कहे किसे इसका जिम्मेदार ठहराए।
आलम ये है कि, उत्तराखंड की आंखों में आंसू है, पाकिस्तान के खिलाफ गुस्सा है अंतिम यात्रा में नारों की शक्ल में दिलों का उबाल है। ताबूत देख कर जवाब देने का मन है और शहीद की बेवा और बच्चो को देखकर गला रुध रहा है। उत्तराखंड की तकदीर में कुछ ऐसा ही है लेकिन जब तिरंगा ताबूत से लिपटा दिखाई देता है तो उत्तराखंड का सीना गर्व से चौड़ा भी हो जाता है क्योंकि हर एक की मुक्कदर में तिरंगे से लिपटकर आना नहीं होता।
सेलाकुई में भी आज ऐसा ही माहौल था जब हवलदार नरेद्र को अंतिम विदाई देने के लिए आम और खास का जमघट लगा। ऐसे गम और गर्व भरे माहौल के बीच सूबे की महिला एवं बाल विकास मंत्री रेखा आर्य ने शहीद नरेद्र बिष्ट के परिजनों को ढाढ़स बंधाया और ये भंरोसा देने की कोशिश कि सरकार हर मोड़ पर उनके साथ है। गमगीन महौल मे भर्राए गले से राज्य मंत्री रेखा आर्य ने कहा हवलदार नरेंद्र बिष्ट की शहादत को ये मुल्क नहीं भूल सकता। बेशक आज शहीद हमारे बीच सदेह नहीं है लेकिन हम उनके परिवार के साथ हर वक्त रहने की कोशिश करेंगे ताकि शहीदो को परिजन खुद को अकेला महसूस न करें।