देहरादून: एक ओऱ जहां मंत्री-विधायक या कुछ विभागी अधिकारियों की कार्यप्रणाली से जनता खफा और बेहाल रहती है. वहीं कुछ विधायक ऐसे भी हैं जो जनता की तरह ही अफसरों की कार्यप्रणाली से नाराज या खफा है. लेकिन जब मंत्री विधायक भी आला-अफसरों से नाखुश हों तो आप क्या कहेंगें.
जी हां ऐसा ही हो रहा प्रदेश में. हाल ही में एक दर्जन विधायक अफसरों की मनमानी और प्रोटोकॉल का पालन न करने की फरियाद लेकर मुख्यमंत्री दरबार में पहुंचे थे और अब वन एवं पर्यावरण मंत्री डॉ.हरक सिंह रावत को भी ऐसी ही शिकायत लेकर मुख्यमंत्री को पत्र लिखना पड़ा है। दरअसल वन विकास निगम में प्रबंध निदेशक के सेवानिवृत्त होने पर बगैर विभागीय मंत्री के अनुमोदन के ही इस पद पर नई तैनाती कर दी गई। जिससे मंत्री जी खफा हैं.
विधायक की बातों को नहीं दे रहे तवज्जों
विधायक-मंत्री नौकरशाही के रवैये को लेकर विधायक गुस्से में हैं। बीते बुधवार को एक दर्जन भाजपा विधायकों ने मुख्यमंत्री से सचिवालय में मुलाकात की थी साथ ही सीएम के सामने अफसरों की शिकायत भी रखी थी. उनका कहना था कि अधिकारी न तो उनकी बातों को तवज्जो दे रहे और न विकास कार्यों के प्रस्तावों को। कुछ का यह भी आरोप था कि उनके लिए निर्धारित प्रोटोकाल तक को अधिकारी ताक पर रख रहे हैं। तब मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देशित करने की बात कही थी।
नई तैनाती में विभागीय मंत्री से राय न लेने के मामले पकड़ा तूल
विधायकों की उपेक्षा का यह मसला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि नौकरशाही ने वन विकास निगम में प्रबंध निदेशक के पद पर नई तैनाती में विभागीय मंत्री से राय न लेने का मामला तूल पकड़ गया है। दरअसल, वन विकास निगम के प्रबंध निदेशक एसटीएस लेप्चा के 30 अप्रैल को रिटायर होने के मद्देनजर शासन ने 27 अपै्रल को एक आदेश जारी किया। इसके तहत जैव विविधता बोर्ड के अध्यक्ष राकेश शाह को निगम के प्रबंध निदेशक की अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी गई।
विभागीय मंत्री होने के नाते नहीं ली कोई सहमति
शासन के रवैया पर मंत्री डॉ.हरक सिंह रावत ने कड़ा ऐतराज जताया है और कहा कि विभागीय मंत्री होने के नाते निगम के प्रबंध निदेशक पद पर व्यवस्था के संबंध में उनसे कोई सहमति लेने की जरूरत नहीं समझी गई। डॉ.रावत का कहना है कि यह स्थिति ठीक नहीं है। इस सिलसिले में वह मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिख रहे हैं।
डॉ. हरक सिंह रावत का कहना है कि निगम के प्रबंध निदेशक पद पर तैनाती टेंपरेरी व्यवस्था है, लेकिन इसमें विभागीय मंत्री की सहमति तो ली ही जानी चाहिए थी। मैं मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिख रहा हूं कि यह नियुक्ति किस आधार पर हुई और विभागीय मंत्री होने के नाते मुझसे राय लेने की जरूरत क्यों नहीं समझी गई। पत्र की प्रति मुख्य सचिव और अपर मुख्य सचिव को भी भेजी जा रही है।