कश्मीर घाटी से आतंकवाद के सफाए के मिशन में जुटे सुरक्षाबलों को बड़ी सफलता मिली, जब दक्षिणी कश्मीर के पुलवामा में सेना ने मोस्ट वॉन्टेड टेररिस्ट जाकिर मूसा को एक एनकाउंटर में मार गिराया। हिज्बुल कमांडर बुरहान वानी के बाद घाटी में आतंक के पोस्टर बॉय बन चुके जाकिर मूसा ने इंजनियरिंग की पढ़ाई छोड़ इस्लामिक राज्य की स्थापना के लिए जंग का रास्ता चुना। वह आतंकी संगठन अल कायदा से जुड़े अंसार गजावत-उल-हिंद का चीफ था. भारतीय सेना के नॉर्दर्न कमांड ने आधिकारिक तौर पर मूसा के मारे जाने की पुष्टि की है।
सेना की 42 राष्ट्रीय राइफल्स, जम्मू-कश्मीर पुलिस और CRPF की संयुक्त टीम का अभियान
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कश्मीर घाटी में सेना को गुरुवार दोपहर पुलवामा के त्राल में जाकिर मूसा के मौजूद होने की जानकारी मिली थी। इस सूचना पर सेना की 42 राष्ट्रीय राइफल्स, जम्मू-कश्मीर पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप, और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के जवानों ने यहां पर बड़ा सर्च ऑपरेशन शुरू किया। इस दौरान जाकिर मूसा के ठिकाने की घेराबंदी कर सेना के अधिकारियों ने उसे सरेंडर करने के लिए कहा, जिसपर मूसा ने सेना के अधिकारियों पर ग्रेनेड हमला कर भागने की कोशिश की। मुठभेड़ के दौरान वह ढेर हो गया। इसके बाद सेना ने बड़ा काउंटर ऑपरेशन शुरू करते हुए इलाके में सख्त घेराबंदी की और फिर भारी गोलीबारी करते हुए मूसा को उसी मकान में मार गिराया, जहां उसने पनाह ली थी।
पढ़ा-लिखा और टेक सेवी जनरेशन का आतंकवादी,
जाकिर मूसा पढ़ा-लिखा और टेक्नॉलजी संपन्न था. मूसा को कश्मीर घाटी में आतंक का पोस्टर बॉय कहा जाता था और सुरक्षा एजेंसियां काफी समय से उसकी तलाश कर रही थी। बीते दिनों कश्मीर में तमाम आतंकियों के जनाजे में मूसा के समर्थन में नारे लगाने की बात भी सामने आई थी। वह घाटी में सुरक्षाबलों पर हुए कई हमलों की वारदात में भी शामिल था।
जाकिर मूसा सम्पन्न परिवार से, बीच में ही छोड़ी इंजिनियरिंग
जाकिर मूसा एक बड़े औऱ संपन्न परिवार से ताल्लुक रखता था। उसके पिता एक इंजिनियर हैं। 2011 में स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए चंडीगढ़ चला गया। वहां उसने इंजिनियरिंग की पढ़ाई के लिए एक कॉलेज में दाखिला ले तो लिया, लेकिन 2 साल बाद ही 2013 में पढ़ाई बीच में ही छोड़ वापस लौट गया। ऐसा बताया जाता है कि 2010 में कश्मीर में कथित तौर पर तीन आतंकियों के एनकाउंटर के बाद हुई हिंसा के बाद से ही उसकी सोच बदल गई थी। वहीं इसके बाज इंजिनियरिंग की पढ़ाई छोड़ वापस घाटी लौटे मूसा ने आतंकी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन का दामन थाम लिया। हालांकि बाद में मूसा का हिजबुल के साथ मतभेद हो गया। मूसा, कश्मीर की लड़ाई को राजनीतिक ना मानकर धार्मिक मानता था। वह इसे इस्लामिक स्टेट की स्थापना के लिए लड़ी जा रही जंग मानता था। इसे लेकर वह हिज्बुल से अलग हो गया और अंसार गजावत-उल-हिंद का चीफ बन गया, जिसे अल-कायदा से जुड़ा संगठन माना जाता है।
सेना के लिए बना था सिरदर्दी
बुरहान के ढेर होने के बाद जाकिर मूसा सुरक्षाबलों के लिए सिरदर्द बन गया था। मूसा चाहता था कि उसकी पहचान सिर्फ कश्मीर तक ही सीमित ना रहे, इसलिए उसने पाकिस्तान में बैठे खालिस्तान फोर्स और बब्बर खालसा के आतंकियों से भी संपर्क बनाए। मूसा की सक्रियता अमृतसर सहित पंजाब के कुछ अन्य हिस्सों में भी सामने आई थी। वह अलकायदा के साथ ही आईएस के आतंकियों के संपर्क में भी था।