काशीपुर,संवाददाता- मंदिर में जले तो पूजा, शादी में जले तो शगुन, त्यौहारों में जले तो दीवाली। बावजूद इसके मिट्टी की सोंधी महक से तर दियों का वजूद खतरे में है। हकीकत ये है कि मिट्टी को दिए में ढालकर रोशनी बिखरने वाले कुम्हार के घर दिए बनाने के बावजूद अंधेरे में हैं। जब से चीन ने हमारे त्योहारों को हाईजैक किया है तब से भारतीय उत्पादक और भारतीय सामान के सामने संकट खड़ा हो गया है। खैर बड़े कारखाने वाले तो अपने आपको संभाल भी सकते हैं लेकिंन मिट्टी का कलाकार कुम्हार अपने आपको बिना किसी मदद के कैसे संभाले। भारतीय बाजारों मे छाई चीनी लड़ियों की चकाचौध से भारतीय उपभोक्ता की आंखें चौधिया गई हैं उसे चीनी लड़ी की चमचमाहट तो दिखती है लेकिन पड़ोस के कुम्हार के बनाए दिए में समायी कला और खुशी नहीं दिखाई देती। जिसका असर मुल्क के कुम्हार तबके पर पड़ता है। आलम ये की कच्चे मकानो में रहने वाले कुम्हारों के सामने इस बदलाव से रोज़ी रोटी का संकट भी पैदा हो गया है। एक पीढ़ी से दूसरी पीढी में जाने वाली ये हिंदुस्तानी कला इन हालातों में कभी भी दम तोड़ देगी। दरअसल खुशहाली का दौर देख चुके उम्रदराज कुम्हार मौजूदा दौर के चीनी आर्थिक आक्रमण से पस्त हो गए हैं और वे नहीं चाहते कि उनकी आने वाली पीढ़ी इस पेशे को अपनाए। हालांकि उरी हमले के बाद स्वदेशी की भावना में उफान आया है लेकिन अभी इस भावना को बाजार में बहने की दरकार है ताकि चीनी माल के प्रति जनता का लगाव खुद-ब-खुद खत्म हो जाए। उम्मीद की जा रही है कि आने वाले वक्त में जनता का रुझान मिट्टी के दियों की ओर बढ़ेगा।