देहरादून। उत्तराखंड में लोकसभा चुनावों के लिए मतदान में महज दो दिन रह गए हैं और इस बीच सूबे में सियासी समीकरण जबरदस्त तरीके से बदलते नजर आ रहें हैं। जिस मोदी लहर के सहारे उत्तराखंड की पांच लोकसभा सीटों पर फिर से भगवा फहरने के कयास लगाए जा रहे थे उनमें से कुछ सीटों पर अब हाथ की बढ़त की खबरें आने लगी हैं। कांग्रेस न सिर्फ टक्कर में आती नजर आ रही है बल्कि एक से अधिक सीटों पर कांग्रेस जीत का झंडा भी फहरा सकती है। ये रिपोर्ट हमने अलग अलग संसदीय क्षेत्रों के लोंगों से मिले फीडबैक के आधार पर तैयार की है। इस रिपोर्ट को तैयार करने में लोगों ने कई पहलुओं पर अपनी राय दी लेकिन हमने उसे बातचीत के आधार पर तीन प्रमुख हिस्सों में बांटा है। आइए देखते हैं सीटवार उत्तराखंड का चुनावी मिजाज क्या कहता है।
नैनीताल- ऊधमसिंह नगर सीट
प्रत्याशी –
इस सीट पर उलटफेर वाला परिणाम भी सामने आ सकता है। नैनीताल सीट काफी समय तक कांग्रेस के पास रही है और कांग्रेस के बड़े कद के नेताओं को संसद की दहलीज तक पहुंचाती रही है। इस बार कांग्रेस ने उत्तराखंड में अपने सबसे कद्दावर नेता हरीश रावत को यहां से खड़ा किया है। वहीं बीजेपी ने अजय भट्ट पर दांव खेला है। संसदीय चुनावों के लिए अजय भट्ट का ये पहला अनुभव है। संगठन पर आक्रामक और मजबूत पकड़ रखने वाले पर व्यक्तिगत जीवन में सौम्य छवि वाले अजय भट्ट इस सीट पर खासी मेहनत कर रहें हैं।
समीकरण और संगठन –
संगठन के मामले में बीजेपी ने कांग्रेस को पूरे राज्य में पीछे छोड़ दिया है। अजय भट्ट के साथ पूरा स्थानीय संगठन लगा हुआ है। वहीं हरीश रावत को संगठन स्तर से कुछ खास मदद नहीं मिल रही है। ये बात अलग है कि उत्तराखंड में हरीश रावत खुद एक संगठन हैं। चुनावी समीकरणों की मानें तो ग्रामीण इलाके हरीश रावत के लिए वोट बैंक साबित हो सकते हैं। वहीं यूएस नगर में मुस्लिम, सिख वोट बैंक हरीश रावत के लिए जीत की वजह बन सकता है। यूएस नगर में फ्लोटिंग वोट्स की बहुतायत नजर आती है जबकि मतदान के लिए अंतिम समय में निर्णय लेने वाले भी खासी तादाद में हैं।
जनता का मन –
कुमाऊं की जनता ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं लेकिन जो कुछ भी सियासी चर्चाएं हैं उनमें हरीश रावत को इस सीट से एक मौका दिए जाने की चर्चाएं भी सुनाई देने लगीं हैं। अजय भट्ट के लिए नरेंद्र मोदी के नाम का सहारा ही सबसे बड़ा सहारा नजर आ रहा है। हालांकि मोदी लहर शुरुआती चरण में जिस तरह की थी वो अब नहीं सुनाई दे रही है। हरीश रावत की कुमाऊं के पहाड़ी और यूएस नगर के मैदानी इलाकों में अच्छी पकड़ है लेकिन ये पकड़ शहरी इलाकों में कमजोर पड़ती नजर आ रही है। शहरी इलाकों में अजय भट्ट तो नहीं लेकिन बीजेपी का खासा दबदबा है। शहरी वोटर मोदी नाम के साथ खड़ा दिखता है। हालांकि हरीश रावत न सिर्फ जनाधार वाले नेता हैं बल्कि काफी वक्त से इस सीट पर अपनी चुनावी तैयारी कर रहे थे। पिछले कुछ दिनों में हरीश रावत की स्थिती इस सीट पर खासी मजबूत होती दिख रही है।
स्थानीय सांसद प्रत्याशी की छवि को मतदाता आंकने के मूड में है और ऐसा हुआ तो अजय भट्ट पर हरीश रावत भारी पड़ सकते हैं। कुल मिलाकर यहां टक्कर हो रही है।
अल्मोड़ा
प्रत्याशी –
अल्मोड़ा मे प्रत्याशियों को लेकर कुछ नया नहीं है। कांग्रेस ने एक बार फिर प्रदीप टम्टा को आगे किया है तो जातीय समीकरणों में फिट बैठने वाले अजय टम्टा बीजेपी के टिकट पर फिर से मैदान में हैं। अजय टम्टा मौजूदा सांसद हैं।
समीकरण और संगठन–
कांग्रेस के प्रत्याशियों के लिए संगठन स्तर पर किसी भी सीट से कोई मदद मिल रही हो ऐसा लगता नहीं है। कांग्रेस के तमाम उम्मीदवार अपनी ही छवि के बदौलत मैदान में हैं। प्रदीप टम्टा भी उन्हीं में से एक हैं। वहीं बीजेपी का संगठन राज्य की कई लोकसभा सीटों पर मजबूती से चुनाव लड़ रहा है लेकिन अल्मोड़ा में स्थिती कुछ अलग है। यहां बीजेपी संगठनात्मक स्तर पर कई धड़ों में बंटी हुई नजर आ रही है। ऐसे में अजय टम्टा के लिए मुश्किलें हो सकती हैं। अल्मोड़ा संसदीय सीट पर प्रदीप टम्टा जिन इलाकों में बढ़त बनाते दिख रहें हैं उसमें अधिकतर ग्रामीण इलाके हैं। शहरों में अजय टम्टा से अधिक नरेंद्र मोदी को लेकर लोग अधिक उत्साहित हैं।
जनता का मन –
अल्मोड़ा सीट को लेकर हमने जितने भी लोगों और जानकारों से बात की उन सभी के मुताबिक कांग्रेस के प्रदीप टम्टा बड़ा उलटफेर कर सकते हैं। अजय टम्टा को एंटी इंकंबेंसी फैक्टर का सामना कर पड़ सकता है। विधानसभावार देखें तो कई ऐसी विधानसभाएं हैं जहां अजय टम्टा को लेकर नाराजगी भरी आवाजें सुनाईं दे रहीं हैं। जागेश्वर, सल्ट, अल्मोड़ा और धारचुला जैसे इलाकों में अजय टम्टा के प्रति स्थानीय जनता में नाराजगी महसूस की जा रही है। जानकारों की माने तो ये अल्मोड़ा में उलटफेर हो सकता है।
टिहरी
प्रत्याशी –
उत्तराखंड की टिहरी संसदीय सीट चुनावी रणनीतिकारों के लिए दिलचस्प बन गई है। टिहरी में प्रीतम सिंह पर चुनावी दांव खेलकर कांग्रेस ने अपने सेकेंड लाइन लीडरशिप को कमान देने की शुरुआत की है तो बीजेपी ने सेफ गेम खेला है। बीजेपी ने माला राज्य लक्ष्मी शाह को ही टिकट देकर साफ कर दिया है वो पारंपरिक राजनीति में ही विश्वास कर रहें हैं।
समीकरण और संगठन –
टिहरी संसदीय सीट के कई इलाकों में कांग्रेस प्रत्याशी प्रीतम सिंह की अच्छी पकड़ है इस बात में दो राय नहीं है। जौनसार और चकराता के इलाकों में प्रीतम सिंह, माला राज्य लक्ष्मी शाह को कड़ी टक्कर दे रहें हैं। जानकारों की माने तो मदतान से दो दिनों पहले ही प्रीतम सिंह का ग्राफ काफी तेजी के ऊपर आया है। अब टिहरी शहर में भी प्रीतम सिंह टक्कर में आ गए हैं। वहीं माला राज्य लक्ष्मी शाह के पास शहरी वोटों का सहारा है। शहरी इलाकों में प्रीतम सिंह के लिए मुश्किल हो सकती है। राजघराने से संबंध रखने के साथ ही नरेंद्र मोदी के नाम का सहारा माला राज्य लक्ष्मी शाह के लिए खेवनहार हो सकता है। हालांकि संगठन का भी साथ उन्हें मिल रहा है। वहीं संगठन स्तर पर प्रीतम सिंह को भी यहां कमजोर नहीं माना जा सकता है। प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते भी प्रीतम सिंह के लिए प्रदेश कांग्रेस यहां सक्रिय दिख रही है। दलित और सवर्ण वोटों का यहां दोनों तरफ बंटवारा दिख रहा है।
जनता का मन –
मतदान से कुछ दिनों पहले टिहरी संसदीय सीट पर चुनावी समीकरण बेहद तेजी से बदले हैं। जिस सीट पर बीजेपी खासी सुरक्षित मानी जा रही थी उस सीट पर अब कांग्रेस भी टक्कर में दिख रही है। टिहरी संसदीय क्षेत्र के कई इलाके ऐसे हैं जहां प्रीतम सिंह कड़ी टक्कर देते हुए दिख रहें हैं। देहरादून में पड़ने वाले इलाकों में बीजेपी बढ़त बना रही है तो पहाड़ के कई इलाकों में कांग्रेस के नारे सुनाई दे रहें हैं। माला राज्य लक्ष्मी शाह की छवि को लेकर जनता को कोई परेशानी नहीं है लेकिन इलाके में काम न होने का दर्द सभी की जुबान पर है। चुनावी जानकारों की माने तो इस सीट पर कांटे की टक्कर तय है।
पौड़ी
प्रत्याशी –
उत्तराखंड की पौड़ी संसदीय सीट सैन्य बहुल सीट के तौर पर मानी जाती है। इस सीट पर इस बार कांग्रेस ने मौजूदा बीजेपी सांसद बीसी खंडूरी के बेटे मनीष खंडूरी को उतारा है तो बीजेपी ने तीरथ सिंह रावत को टिकट दिया है। मनीष एक सुलझे नेता के तौर पर लोगों के बीच पहुंच रहें हैं तो वहीं तीरथ के पास खासा राजनीतिक अनुभव है।
समीकरण और संगठन –
पौड़ी में ब्राह्मण और ठाकुर वोटों में बंटवारा साफ महसूस हो रहा है। मनीष खंडूरी भले ही राजनीति में खुद नए हों लेकिन बीसी खंडूरी का पुत्र होने के नाते उन्हें पहचान बनाने में समय नहीं लगा है। मनीष खंडूरी को युवाओं का अच्छा साथ मिलता नजर आ रहा है। पौड़ी के मिजाज को समझने वाले कुछ जानकार सिम्पैथी वोट की उम्मीद भी जता रहें हैं लेकिन ज्यादातर जानकार इससे बहुत अधिक इत्फाक नहीं रखते। तीरथ सिंह रावत के लिए संगठन काफी मेहनत कर रहा है लेकिन अन्तर्कलह से इंकार नहीं किया जा सकता है। कई इलाकों में बीजेपी के संगठन से जुड़े कई बड़े नेता सक्रिय नहीं नजर आ रहें हैं। इनमें से कइयों की नाराजगी विधानसभा चुनावों के समय से चली आ रही है।
जनता का मन –
पौड़ी सीट पर जनता का मन भांपना खासा मुश्किलों भरा है। सैन्य पृष्ठभूमि से जुड़े इस इलाके में कोई भी खुलकर बोलने के लिए तैयार नहीं हो रहा है। हालांकि युवाओं में मनीष खंडूरी को लेकर खासा उत्साह देखा जा रहा है। बीसी खंडूरी के बेटे होने के नाते मनीष खूंडरी को लेकर लोगों की उम्मीदे बहुत हैं। वहीं तीरथ सिंह रावत के लिए बीजेपी का कॉडर वोट पूरी तरह वोट करने को तैयार दिखता है। तीरथ सिंह रावत के लिए संगठन भी खासी मेहनत करता नजर आ रहा है। स्थानीय मुद्दों को लेकर भी लोग तीरथ सिंह रावत से सवाल जवाब कर रहें हैं। संसदीय क्षेत्र में पड़ने वाली कई विधानसभाओं में बीजेपी के विधायकों को लेकर नाराजगी का सामना भी तीरथ सिंह रावत को करना पड़ रहा है। हालांकि इस सबके बावजूद भी वो मजबूत स्थिती में दिखाई देते हैं।
हरिद्वार
प्रत्याशी –
हरिद्वार में बीजेपी ने रमेश पोखरियाल निशंक को दोबारा टिकट दिया है तो कांग्रेस के लिए यहां उम्मीदवार तलाश पाना बेहद मुश्किल भरा रहा। पहले यहां से हरीश रावत के चुनाव लड़ने की खबरें आ रहीं थीं पर अंत में कांग्रेस ने स्थानीय अंबरीष कुमार को टिकट दे दिया।
समीकरण और संगठन –
हरिद्वार सीट का समीकरण उत्तराखंड की अन्य चार सीटों से अलग है। ये उत्तराखंड की ऐसी संसदीय सीट है जहां रोचक चुनावी समीकरण बनते हैं। वोटरों की विविधता इस सीट के समीकरण को पेचीदा बना रही है। मुस्लिम वोटों की बहुतायत, जाट, गुज्जर वोट बैंक और दलित वोटों ने यहां हर प्रत्याशी के माथे पर शिकन डाल रखी है। कांग्रेस के अंबरीष कुमार ने स्थानीय और बाहरी का मुद्दा छेड़ कर चुनावी जंग को और दिलचस्प बनाया है। बनिया वोटों को लेकर भी अभी असमंजस बना हुआ है। हालांकि रमेश पोखरियाल निशंक की लोकप्रियता के सामने अंबरीष कुमार बेहद पीछे खड़े दिखाई देते हैं। इसके बावजूद रमेश पोखरियाल निशंक को कड़ी टक्कर मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। बसपा के अंतरिक्ष सैनी के चुनावी मैदान में मजबूती के साथ खड़े होने की वजह से यहां समीकरण बदल गए हैं। अंतरिक्ष सैनी ने भी पिछले कुछ दिनों में खासी ताकत झोंक दी है। हालांकि जानकारी इसके दोनों पहलु बता रहें हैं। कुछ का मानना है कि अंतरिक्ष सैनी के चलते पचास हजार से अधिक सैनी वोटों का बंटवारा हो रहा है। ये स्थिती बीजेपी के लिए परेशानी भरी हो सकती है क्योंकि उसके वोट बंटेंगे तो कांग्रेस को भी नुकसान होता दिखेगा। कई इलाकों में बाहरी और स्थानीय के मुद्दे पर भी बहस सुनाई दे रही है।
जनता का मन –
शुरुआती दौर में हरिद्वार सीट पर निशंक की एकतरफा जीत के कयास लगाए जा रहे थे। हालांकि अब भी निशंक बेहद मजबूत स्थिती में नजर आ रहें हैं। अंबरीश कुमार ने जिस स्थानीय और बाहरी उम्मीदवार का मुद्दा उठाया है अगर वो मुद्दा लोगों के मन में बैठा तो निशंक को मुश्किल हो सकती है। वहीं यूपी से सटे मुस्लिम, जाट और गुज्जर बहुल इलाकों में स्पष्ट चुनावी तस्वीर उभर कर सामने नहीं आ रही है। इन इलाकों में बसपा के अंतरिक्ष सैनी दोनों ही पार्टियों के वोट काटेंगे।