पंचायत चुनाव आने वाले हैं। तैयारियां जोरों पर हैं। सरकार ने इस बार कई उम्मीदवारों को पहले ही मैदान छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। जो मैदान में उतरने लायक हैं, वो घनघोर तैयारी में हैं। दारू की बातलें अभी से खोली जाने लगी हैं। पहले 40-50 रुपये की कच्ची में काम चल जाता था। अब 250-300 रुपये कम वाली को कोई पूछता ही नहीं। ये पीड़ा उनकी है, जो तैयारियों में लगे हैं। सुनो गांव वालों…सुना है, फलां देहरादून से चुनाव लड़ने वापस वा रहा है। संभलकर रहना। कहीं आपने जीता दिया और बाद में वो कहने लगे कि मैं तो देहरादून वालों हूं, फिर पछतावे के सिवा कुछ हाथ नहीं लगने वाला…।
पंचायत चुनाव में इस बार कुछ ज्यादा ही युवा कूदने का मन बना रहे हैं। केवल मन ही नहीं बना रहे। सरकार ने उनको मजबूर कर दिया है। अब कहेंगे कि मजबूर कैसे किया, तो मैं बताता हूं। मजबूर ऐसा किया कि पहले वालों ने मतलब पिताजी ने तो चार बच्चों से कम पैदा किए ही नहीं। किसी-किसी पूर्व प्रधान जी के तो पांच-पांच, छह-छह तक बच्चे हैं। वो तो हो गए आउट। अब उनके बेटे, अगर गांव में होंगे, तो नये जमाने के हिसाब से उनके एक या दो बेटी या बेटा होगा। इस हिसाब तो चुनाव लड़ने के लिए वही एलिजबल हुए ना। अगर वो भी ना लड़े तो अपनी हुकमत बनी रहे। बंदा किसी दुश्मन को भी दोस्त बना सकता है। ऐसा होना सामान्य बात है…चौंकिएगा मत।
अब बात उन बाजीगरों की जो बाजी पलटने के लिए देहरादून में जमीनें बेचकर मोटा पैसा दबाये बैठे हैं। प्रधानी से लेकर जिला पंचायत तक बंदों ने नजर गड़ाई हुई है। कई तो ऐसे भी हैं, जो सरकार से अपने मुताबित सीट का जुगाड़ करने में जुटे हैं। सरकार भी उनकी बात सुनने को तत्पर है। उसका कारण है रुपया-पैसा। सरकार को भी फिर से सरकार में आने के लिए कुछ जुगाड़-उगाड़ तो चाहिए ना…। मेरा मतलब तो आप समझ ही गए होंगे। इसिलिए कहता हूं, संभलकर रहिए। ये जो प्राॅपर्टी बेचने वाले हैं। लोगों को खरीदने के लिए भी तैयार हैं। आप बिकिएगा मत। ये ठग भी तगड़े होते हैं। आप ठगने से बचिएगा। ये थोड़ा दूसरे टाइप के होते हैं। इनसे बचिएगा। ये कुछ भी कर सकते हैं। ये तो पक्का है कि जीतने के बाद ऐसा कहेंगे ही कि मैं तो देहरादून वाला हूं। फिर मत कहना बताया नहीं…।
….प्रदीप रावत(रवांल्टा)