टिहरी- जिले इस साल अब तक तेंदुए के हमलों में दो लोगों की मौत हो चुकी है जबकि छह घायल हुए हैं। हिंसक जानवरों के हमले से ग्रामीण दहशतजदा हैं। बीती 24 जुलाई को टिहरी के नंदगांव और बीती 23 अगस्त को सजवाणा कांडा में पिंजरे में कैद आदमखोर तेंदुओं को ग्रामीण मिलकर मारना चाहते थे।
बाघ के लगातार हमले और पिछले दिनों जिले के देवप्रयाग ब्लॉक के सजवाणकांडा मे आंतक मचाए आदमखोर बाघ को गोली मारने के आदेश के बाद उसकी मौत ने सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या जानवर और इंसान के बीच यूं ही जंग जारी रहेगी ? या हिंसक होते जानवरों के भय से बस्तियां पलायन करती रहेंगी या फिर कोई दूसरा रास्ता भी हो सकता है जिससे जानवर और इंसान एक साथ रह सकें बिना किसी डर।
महाराष्ट्र में मुंबई से सटे संजय गांधी नेशनल पार्क और पुणे के ग्रामीण इलाके जुनार में तेंदुए-मानव संघर्ष थामने के लिए अपनाए गए नुस्खे की सफलता के बाद अब इसे उत्तराखंड मे भी अपनाने की तैयारी है। पायलट प्रोजेक्ट के तहत टिहरी, पौड़ी और अल्मोड़ा जिले के छह गांवों को चुना गया है जहां ये प्रोजेक्ट चलाया
जाएगा। इसके लिए जंगलात के 6मुलाजिम और 6ग्रामीणों की 12 सदस्यीय टीम महाराष्ट्र में प्रशिक्षण लेगी। उसके बाद स्थानीय परिस्थितियों के मुताबिक बदलाव करके अक्टूबर माह से चुने गए गांवों में यह पहल शुरू भी कर दी जाएगी।
अपर प्रमुख वन संरक्षक (वन्यजीव) डॉ. धनंजय मोहन के मुताबिक महाराष्ट्र में अपनाए गए फार्मूले को उत्तराखंड में पायलट प्रोजेक्ट के तहत टिहरी, पौड़ी अल्मोड़ा के दो-दो गांवों में लागू किया जाएगा। इसके लिए संबंधित गांवों के दो ग्रामीण और वन रेंजों के रेंज अधिकारी और वन दारोगा को प्रशिक्षण के लिए महाराष्ट्र के संजय गांधी नेशनल पार्क और जुनार गांव भेजा जा जाएगा। 12 सदस्यीय दल की अगुआई गोविंद वन्यजीव विहार पुरोला के वाइल्ड लाइफ वार्डन हेमशंकर मैंदोला करेंगे। महाराष्ट्र में दल 8 दिन तक प्रशिक्षण लेगा।