देहरादून : मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सावन के पहले सोमवार के दिन अभिशापित माने जाने वाले मुख्यमंत्री आवास में प्रवेश किया। सबसे पहले सीएम ने सीएम आवास स्थित शिव मंदिर में पूजा अर्चना की और विधि विधान से बंगले में प्रवेश किया। बता दें कि गढ़ी कैंट स्थित सीएम आवास को अपशकुन माना जाता है। इस बंगले को लेकर कई मिथक हैं जिनको किनारा कर सीएम ने इस बंगले में अलग तरीके से प्रवेश किया। कहते हैं मां के प्यार में सबसे ज्यादा ताकत होती है और मां के आशीर्वाद से बच्चे का हर काम बन जाता है और हर राह खुल जाती है। कुछ ऐसा ही किया सीएम पुष्कर धामी ने। जी हां बंगले में प्रवेश करने के दौरान सीएम ने अपनी मां के पैर छुए और साथ ही सीएम आवास स्थित कार्यालय की कुर्सी में सीएम पुष्कर सिंह धामी की मां ने बेटे को कुर्सी में बैठाया। जिससे साफ है कि सीएम धामी मिथक पर कोई भरोसा नहीं करते उन्हें भरोसा है तो बस मां के आशीर्वाद पर जिससे बच्चे का काम बन जाता है। सीएम धामी को भरोसा है मां के प्यार पर जिससे ज्यादा ताकत किसी में नहीं। आज तक ऐसा किसी सीएम ने नहीं किया है। सीएम धामी ने इस बंगले में अलग अंदाज में प्रवेश किया।
इस बंगले से जुड़ा है ये मिथक
आपको बता दें कि उत्तराखंड की राजनीति से जुड़ा बड़ा मिथक. जी हां कहा जाता है कि गढ़ी कैंट स्थित मुख्यमंत्री आवास में अपशकुन है. यहां जो भी मुख्यमंत्री रहता है वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता है. उत्तराखंड की राजनीति में इस समय इसी तरह की चर्चाएं चल रही हैं जिन्होंने सबका ध्यान एक बार फिर मुख्यमंत्री आवास की तरफ खींचा है. निर्वतमान सीएम भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और चार साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद उनकी कुर्सी चली गई।
मिथक एक बार फिर से सही साबित हुआ
ये मिथक एक बार फिर से सही साबित हुआ था। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए थे। कार्यकाल को चार साल पूरा होने से पहले उनकी सीएम की कुर्सी चली गई। बता दें कि 18 मार्च को चार साल का कार्यकाल सीएम का पूरा हो रहा था। इसके बाद ये मिथक एक बार फिर से चर्चाओं में आ गया। आपको बता दें कि सीएम आवास देहरादून की खूबसूरत वादियों और पहाड़ों की वादियों के बीच बना है जिसकी लाागत करोड़ों की है। लेकिन इस खूबसूरत हाऊस से जुड़ा एक मिथक जुड़ा है कि इस आवास में जो भी मुख्यमंत्री रहा है वो कभी अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया है. कहा जाता है कि जो सीएम इस हाऊस में रहता है उसे कुर्सी से हाथ धोना पड़ता है।
हरीश रावत ने बना ली थी बंगले से दूरी
यही कारण है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद हरीश रावत ने इस कोठी से दूरी बना ली थी. उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान एक दिन भी बगले में पैर नहीं रखा. हरदा ने अपना ठिकाना बीजापुर गेस्ट हाउस को बनवाया था. हालांकि वो दोबारा सत्ता में नहीं आ पाए।
तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी की सरकार में हुआ था बंगले का निर्माण
आपको बता दें कि इस बंगले का निर्माण तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी की सरकार में हुआ था. हालांकि, जबतक मुख्यमंत्री आवास का निर्माण कार्य पूरा होता इससे पहले ही उनका 5 साल का कार्यकाल पूरा हो गया. इसके बाद 2007 में बीजेपी की सरकार बनी और प्रदेश की कमान मुख्यमंत्री के तौर पर बीसी खंडूड़ी को मिली. जिसके बाद खंडूड़ी ने अधूरे बंगले को बनाया और उद्धाटन किया. लेकिन मिथक एक बार फिर सही साबित हुआ वो भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. ढाई साल बाद ही उनकी कुर्सी चली गई।
बंगले में रहने पर इनकी गई सीएम की कुर्सी
वहीं इसके बाद भाजपा ने सीएम की कुर्सी डॉ. रमेश पोखियाल निशंक को सौंपी. वो भी इस बंगले में आए लेकिन 2012 के चुनाव से ठीक 6 महीने पहले ही हरिद्वार कुंभ घोटाले के आरोप में घिरे निशंक को सत्ता छोड़नी पड़ी.। फिर बीजेपी की कमान बीसी खंडूड़ी के हाथ आ गए लेकिन निशंक भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. फिर बीसी खंडूड़ी के नेतृत्व में बीजेपी ने 2012 का चुनाव लड़ा और बीसी खंडूड़ी को कोटद्वार से हार का सामना करना पड़ा फिर इसके बाद कांग्रेस सत्ता पर काबिज हुई। वहीं कांग्रेस ने तत्कालीन टिहरी से लोकसभा सांसद विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया. मुख्यमंत्री पद हासिल करने के बाद बहुगुणा आवास में रहने लगे लेकिन दो साल बाद फिर सत्ता पलटी और उनकी भी कुर्सी चल गई। ये मिथक फिर से सही साबित हुआ जब त्रिवेंद्र रावत को भी कुर्सी से हाथ धोना पड़ा।
लेकिन सीएम धामी ने मिथकों से किनारा कर सीएम आवास में पूजा अर्चना करविधि विधान से प्रवेश कर लिया है।