हल्द्वानी : कहते हैं कि जब फागुन का रंग चढ़ता है तो सारे गिले शिकवे दूर हो जाते हैं सिर्फ प्रेम का रंग ही रह जाता है और सब उसी रंग में सराबोर रहते हैं जी हां हम बात कर रहे हैं होली की और कुमाऊँ में इन दिनों होली किस शबाब पर है.
महिलाओं की कुमाऊँनी होली का यहां अपना विशेष महत्व
कुमाऊँ का प्रवेश द्वार हल्द्वानी जहां उत्तराखंड के विभिन्न सांस्कृतिक क्षेत्रों से लोग आकर बसे हैं, यहां रंगारंग होली की शुरुआत बसंत पंचमी से ही हो जाती है। महिलाओं की कुमाऊँनी होली का यहां अपना विशेष महत्व है जो समाज को एकजुटता का संदेश देते हुए प्रेम भाव में बांधने का काम करता है। रंगो के इस पर्व में सारे गिले-शिकवे छोड़ महिलाएं पुरुष और बच्चे सब एक रंग में प्रेम भाव से होली गाते हैं। खासकर कुमाऊँ की महिला होलियार पूरे साल होली का इंतजार करती हैं, और करे भी क्यों न क्योंकि, महिलाओं को खुलकर होली में आनंद लेने का अवसर जो मिलता है और वो अलग अलग स्वांग रच कर होली के मधुर गीतों का जमकर आनंद लेती हैं। यही नहीं होली में अलग अलग भाषा और विधाओं की कला का प्रदर्शन भी होता है सभी सांस्कृतिक क्षेत्रों के लोगों की होली यहां एक रंग में दिखती है।
पुलवामा हमले में शहीद हुए सैनिकों को किया याद
वहीं इस बार की होली में पुलवामा हमले में शहीद हुए सैनिकों को भी याद करते हुए होली गाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी जा रही है और सेना के जवानों का उत्साहवर्धन कर आतंकवाद और पाकिस्तान को मुहतोड़ जवाब देने की अपील भी की.
राम की जीवन पर आधारित होली गायन
कुमाऊँ की पहाड़ी होली को जीवित रखने वाली महिला होलियारों का कहना है कि पूस के पहले रविवार से कुमाऊँ में होली गायन शुरू होता है, जिसमें भगवान शिव कृष्ण और राम की जीवन पर आधारित होली गायन होता है और जैसे-जैसे समय नजदीक आता है बसंत पंचमी से रसिक होली गायन भी शुरू होता है, जिसमें स्वांग रचा जाता है और महिलाएं होली गायन कर उसका आनंद भी लेती है।
खड़ी होली और बैठकी होली का कुमाऊँ में विशेष महत्व है इसके अलावा होली में भगवान श्री राम कृष्ण और अन्य भगवानों की होली भी गाई जाती है, लेकिन जैसे जैसे होली का रंग अपने शबाब पर आता है तो यह होली रसिक अंदाज में पहुंच जाती है सामाजिक एकजुटता का संदेश देने वाला यह होली का त्यौहार पूरे उत्तराखंड में बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है।