जब पूरे भारत में विजयादशमी की समाप्ति होती है तब हिमाचल प्रदेश के कुल्लू घाटी में और भी ज्यादा दशहरा का रंग देखने को मिलता है। कुल्लू में दशहरा का काफी महत्तव है और यहां का दशहरा दुनिया काफी अलग और विशेष है। कुल्लू घाटी के लोग अपने दशहरे के त्योहार को बढ़े धूमधाम के साथ मनाते हैं। यहां दशहरा का बड़े स्वरूप में मेला लगता है। जिसकी रौनक महीनें भर तक रहती है। लोग बड़ी तादाद में इस मेले में शिरकत करने आते हैं। चलिए जानते हैं इस दशहरे की खास बातें और क्या है इसका इतिहास और महत्तव।
भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा से होती है शुरूआत
कुल्लू में विजयादशमी का त्योहार 7 दिनों तक मनाया जाता है। लेकिन यहां इस दौरान कोई रावण या मेघनाथ का दहन नहीं होता बल्कि यहां केवल लंका जलाई जाती है। यहां के लोगों का मानना है कि करीब 1000 देवी-देवता इस अवसर पर देव लोक पृथ्वी से आकर इसमें शामिल होते हैं। भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा से दशहरा की शुरूआत मानी जाती है। और सभी स्थानीय देवी-देवता ढोल नगाड़ों की धुनों पर देव मिलन में आते हैं।
16 वीं शताब्दी में राजा जगह सिंह ने की शुरूआत
कहा जाता है कि जब कुल्लू के राजा जगत सिंह किसी गंभीर रोग से पीड़ित थे,तब एक साधु ने उन्हें इस रोग से ठीक होने के लिए भगवान रघुनाथ जी की स्थापना की सलाहू दी थी। सन्यासी ने राजा को बताया था कि उनके स्वस्थ ठीक होने का यही एकमात्र उपाय है। इसलिए साधु कि सलाह अनुसार राजा जगत सिंह ने कुल्लू में भगवान रघुनाथ जी की मूर्ति की स्थापना की और उसके बाद अयोध्या से भगवान रघुनाथ जी (श्रीराम) की प्रतिमा को कुल्लू लाया गया और उसकी स्थापना की गई। अयोध्या से लाई गई मूर्ति के कारण राजा के स्वास्थय में सुधार होने लगा और कुछ ही दिनों में वह पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गए। इस घटना के बाद से राजा ने अपना संपूर्ण राज्य एवं जीवन भगवान रघुनाथ जी की सेवा में समर्पित कर दिया।
ढालपुर मैदान में होता है दशहरा
कुल्लू में दशहरा उत्सव का आयोजन ढालपुर मैदान में होता है। लकड़ी से बने आकर्षक और फूलों से सजे रथ में रघुनाथ की पावन सवारी को मोटी मोटी रस्सी स खींचकर दशहरे की शुरूआत होती है। राज परिवार के सदस्य शाही वेशभूषा में छड़ी लेकर उपस्थित रहते हैं। आस-पास कुल्लू के देवी देवता शोभायमान रहते हैं। कु्ल्लू दशहरे में रावण,मेघनाद और कुंभकरण के पुतले नहीं जलाए जाते लेकिन लंका दहन जरूर होता है। इसमें भगवान रघुनाथ मैदान के निचले हिस्से में नदी किनारे बनाई लकड़ी की सांकेतिक लंका को जलाने जाते हैं। शाही परिवार की कुलदेवी होने के नाते देवी हिडिंबा भी यहां विराजमान रहती हैं।
332 देवी-देवताओं को भेजा निमंत्रण
बता दें कि इस बार दशहरा अंतरराष्ट्रीय मेले के लिए 332 देवी-देवताओं को निमंत्रण भेजा गया है। इनमें से सोमवार देर शाम तक 200 से अधिक देवी-देवता कुल्लू पहुंच गए हैं। मेले में इस बार 14 देश मलयेशिया, रूस, साउथ अफ्रीका, कजाकिस्तान, रोमानिया, वियतनाम, केन्या, श्रीलंका, ताइवान, किरगीस्तान, इराक और अमेरिका आदि के सांस्कृति दल अपनी प्रस्तुतियों से चार चांद लगाएंगे।
1300 जवान रहेंगे मेले में तैनात
भगवान रघुनाथ समेत अन्य देवी-देवताओं की यहां बनाए अस्थायी शिविरों में ठहरेंगे। रघुनाथ की नगरी एवं अठारह करडू की सौह ढालपुर में एक सप्ताह तक देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना और देव मंत्रोच्चारण से पूरा वातावरण महक उठेगा। झारी, धड़छ, घंटी, शहनाई, ढोल, नगाड़ों, करनाल और नरसिंगों की स्वरलहरियों से ढालपुर का नजारा बदला हुआ नजर आएगा। मेले के बहाने ढालपुर पुलिस छावनी में तबदील हो गया है। 1300 जवान मेले में तैनात रहेंगे। वहीं, ड्रोन-सीसीटीवी से भी नजर रखी जाएगी।