महिला सशक्तिकरण की बात करने वाली सरकारें अगर दिलमा देवी को देखेंगी तो शायद महिला दिवस और महिला सशक्तिकरण की बाते मात्र कोरी अफवाह लगेंगेी. आज के समय में महिला सशक्तिकरण की बात करना मात्र वोट और कुर्सी तक ही है. अगर आज सशक्तिकरण के नाम पर जिन महिलाओं की गिनती होनी चाहिए तो वो दिलमा जैसी महिलाएं हैं। जो बिना सरकार की सहायता से आज खुद सशक्त हैं और अपने परिवार का अच्छे से पालन पोषण कर रही हैं।
मजबूरियां इन्सान से क्या-क्या नहीं करा देती हैं। 6-7 साल पहले पति की मृत्यु के बाद दिलमा देवी के सर पर पूरे परिवार का बोझ आ गया। उसके साथ उसकी 5 बेटियां थी। दिलमा के पास कोई रोजगार नहीं है। कैसे परिवार पलेगा, कैसे बच्चियों को पढ़ाया जाएगा, ये सिर्फ दिलमा के लिए सवाल थे। क्योंकि इनका जवाब उसे कहीं से मिलता नहीं दिख रहा था। ऐसे में दिलमा देवी ने अपने बच्चों की खातिर बूट पॉलिश का काम को शुरू कर दिया। जिसे पहले इसका पति किया करता था
बता दें कि पहले यह महिला टिहरी बांध डूब क्षेत्र से प्रभावित छाम बाजार मे बूट पॉलिश का काम करती थी. लेकिन छाम बाजार के टिहरी बांध में डूब जाने के बाद इस महिला को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा। लेकिन कहते हैं ना कि हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती।
ऐसा ही कुछ इस महिला ने किया। यह महिला उसके बाद हिम्मत दिखा कर बिना किसी हिचक के काम करती रही। जिसका नतीजा ये है कि यह महिला क्षेत्र के लोगों के लिए एक नजीर बन गयी है। साथ ही इस महिला ने अपनी कड़ी मेहनत से ये दिखा दिया है कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता।