भारत देश के राज्य मणिपुर में हिंसा देखने को मिल रही है। कई जिले इस हिंसा की चपेट में हैं। वहीं कई लोगों के घरों में तोड़फोड़ देखने को मिली है। साथ ही आगजनी की घटनाएं भी सामने आई है। जिस कारण चप्पे चप्पे पर सेना तैनात की गई है। गृह मंत्री अमित शाह लगातार नजर बनाए हुए हैं। अभी तक 8,000 से अधिक लोगों को विस्थापित किया जा चुका है। पड़ोसी राज्य के सीएम भी लगातार मणिपुर की मदद के लिए आगे आ रहे हैं। लेकिन इस हिंसा के पीछे का कारण क्या है और क्यों राज्य में इस तरह से लोगों को विस्थापित होना पड़ा है। चप्पे चप्पे पर सेना तैनात की गई है। आइये इस हिंसा और विवाद के पीछे का कारण जानते हैं।
मणिपुर में हिंसा क्यों हो रही है?
दरअसल, राज्य की आबादी में 53 प्रतिशत हिस्सा रखने वाले गैर-आदिवासी मेइती समुदाय की अनुसूचित जनजाति (ST) के दर्जे की मांग के खिलाफ चुराचांदपुर जिले के तोरबंग इलाके में ‘ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर’ की ओर से बुलाए गए ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के दौरान बुधवार को हिंसा भड़क गई थी। पुलिस के अनुसार, चुराचांदपुर जिले के तोरबंग क्षेत्र में मार्च के दौरान हथियार लिए हुए लोगों की एक भीड़ ने कथित तौर पर मेइती समुदाय के लोगों पर हमला किया, जिसकी जवाबी कार्रवाई में मेइती समुदाय के लोगों ने भी हमले किए, जिसके कारण पूरे राज्य में हिंसा भड़क गई। उन्होंने बताया कि तोरबंग में तीन घंटे से अधिक समय तक हुई हिंसा में कई दुकानों और घरों में तोड़फोड़ के साथ ही आगजनी की गई।
अनुसूचित जनजाति देने का विरोध क्यों ?
बता दें कि मणिपुर हिंसा के पीछे का कारण जमीन पर कब्जे की जंग को माना जा रहा है। गैर-आदिवासी समुदाय होने की वजह से 53 फीसदी मैतेई समुदाय राज्य के 10 प्रतिशत घाटी के क्षेत्र में सीमित है। वहीं, 90 फीसदी एरिया जो पहाड़ी है उसमें राज्य का 40 फीसदी नागा और कुकी समुदाय रहता है। इतना ही नहीं नागा और कुकी चाहें तो घाटी में जाकर बस सकते हैं लेकिन गैर-आदिवासी होने की वजह से मैतेई पहाड़ों पर नहीं रह सकते। नागा और कुकी आदिवासी हैं और इसलिए उनके लिए कुछ प्रावधान अलग से हैं। यही वजह है कि नागा और कुकी, मैतई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग का विरोध करते हैं।
पहचान और संस्कृति का मुद्दा – मैतेई समुदाय
मणिपुर हाईकोर्ट ने कहा कि मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग पर राज्य सरकार को विचार करना चाहिए। मैतेई समुदाय का मानना है कि यह सिर्फ शिक्षा या नौकरी में आरक्षण का मुद्दा नहीं है। ये पहचान और संस्कृति का मुद्दा है। दरअसल, हाईकोर्ट के निर्देश के बाद जब मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग पर विचार करने की चर्चा जोर पकड़ने लगी तो इसके विरोध में आदिवासी एकता मार्च निकाला गया, जिसमें हिंसा भड़क गई।