देहरादून- नगरों की सीमाओं के विस्तार से न केवल गांवों का वजूद खत्म हो जाएगा, बल्कि इसका असर पंचायत प्रतिनिधियों पर भी पड़ना तय है। ग्राम पंचायतों के नगर निगम में शामिल होने का सीधा नुकसान कई मौजूदा पंचायत प्रतिनिधियों को भी चुनावी समर में उठाना पड़ेगा।
उसकी वजह है चुनावी नियम काएदे। दरअसल निकाय चुनाव में प्रत्याशियों के लिए दो बच्चों की शर्त लागू है, जबकि पंचायत में ऐसी कोई शर्त नहीं है।प्रदेश में दो जुलाई 2002 को जारी शासनादेश के जरिए दो से अधिक बच्चों के अभिभावकों के निकाय चुनाव लड़ने पर रोक लगी हुई है। प्रदेश में इसके लिए कट ऑफ डेट 28 अप्रैल 2003 है। इस तिथि के बाद यदि किसी भी व्यक्ति की तीसरी संतान पैदा हुई है तो वो स्थानीय निकाय में चुनाव नहीं लड़ सकता।
बीते दो बार के निकाय चुनाव इसी नियम पर हुए हैं। लेकिन सूबे में पंचायत चुनाव लड़ने के लिए परिवार नियोजन की ऐसी कोई शर्त नहीं है। लिहाजा मौजूदा सीमा विस्तार से उन पंचायत प्रतिनिधियों का पार्षदी का ख्वाब चकनाचूर हो जाएगा जिनकी तीसरी संतान कट ऑफ डेट के बाद पैदा हुई है।
खबर है कि कई पंच परमेश्वरों ने इस नियम के बदलाव के लिेए शहरी विकास मंत्री से भी मुलाकात की ताकि पंचों के बाद वे पार्षदी के लिए दावा कर सकें। लेकिन उन्हें बिना अाश्वासन के निराश ही लौटना पड़ा।