Kedarnath dham mandir हिन्दुओं के प्रमुख तीर्थों में से एक है। उत्तराखंड राज्य में बर्फ की चादरों से घिरा यह भगवान शिव का अनुपम निवास करोड़ों लोगों की आस्था का विषय है। मंदिर का इतिहास बहुत ही प्राचीन है। केदारनाथ धाम भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। जो की उत्तर भारत में स्थित है। केदारनाथ धाम में विश्वभर से श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं।
शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाते हैं कपाट
केदारनाथ धाम में bhagwan shiv द्वारा धारण किए गए भैंसे के रूप के पिछले भाग की पूजा की जाती है। वहीं केदारनाथ मंदिर के इतिहास से जुड़ी अन्य कहानियां भी काफी प्रचलित है। केदारनाथ धाम में हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु baba kedar के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

धाम के कपाट हर साल अप्रैल या मई में खोले जाते हैं और भैयादूज पर शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाते हैं। शीतकाल में baba kedar की चल विग्रह उत्सव डोली को ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर लाया जाता है। छह माह के लिए baba kedar omkareshwar temple में ही विराजमान रहते हैं।

Kedarnath dham mandir को लेकर प्रचलित कहानियां
पौराणिक कहानियों के अनुसार कहा जाता है कि केदारनाथ धाम में ज्योतिर्लिंग की स्थापना का ऐतिहासिक आधार तब निर्मित हुआ था जब एक दिन हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार और महा तपस्वी नर और नारायण तप कर रहे थे। उनकी तपस्या से भगवान शंकर प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन दिए। भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना के फल स्वरूप उन्हें आशीर्वाद दिया था कि वह ज्योतिर्लिंग के रूप में सदैव यहां पर वास करेंगे।

केदारनाथ मंदिर के बाहरी भाग में स्थित नंदी बैल को वाहन के रूप में विराजमान एवं स्थापित होने का आधार तब बना जब द्वापर युग में महाभारत के बाद के बाद पांडव अपने गोत्र बंधुओं की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शंकर के दर्शन करना चाहते थे। परंतु भगवान शिव उनसे नाराज थे। पांडव भगवान शिव के दर्शन के लिए काशी पहुंचे थे। परन्तु भगवान शिव ने उन्हें वहां दर्शन नहीं दिए।

इसके बाद पांडवों ने हिमालय जाने का फैसला किया और हिमालय तक पहुंच गए। परंतु bhagwan shiv पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे इसलिए भगवान शंकर वहां से भी अंतर्ध्यान हो गए और केदार में वास किया। पांडव भी bhagwan shiv का आशीर्वाद पाने के लिए एकजुटता और लगन से भगवान शिव को ढूंढते- ढूंढते केदार पहुंच गए। भगवान शिव ने केदार में बैल का रूप धारण कर लिया। केदार में उस समय बहुत सारी बैल उपस्थित थी।
पांडवों को एक बैल पर कुछ संदेह हुआ इसीलिए भीम ने अपना विशाल रूप धारण किया और दो पहाड़ों पर अपने पैर रख दिए भीम के इस रूप से भयभीत होकर बैल भीम के दोनों पैरों के नीचे से होते हुए भागने लगे परंतु एक बैल भीम के पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुआ।

भीम बलपूर्वक उस बैल पर हावी होने लगे परंतु बैल धीरे-धीरे अंतर्ध्यान होते हुए भूमि में सम्मिलित होने लगा। भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। पांडवों के दृढ़ संकल्प और एकजुटता से भगवान शंकर प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन दिए। भगवान शंकर ने आशीर्वाद रूप में उन्हें पापों से मुक्ति का वरदान दिया।
कपाट बंद होने के बाद भी जलता है मंदिर का दीप
शिव के इस पावन धाम में अत्यधिक बर्फ जमा होने के कारण धाम के कपाट को छह महीने के लिए बंद कर दिया जाता है। परन्तु यह एक चमत्कार बना हुआ है कि छह महीने किसी के भी मंदिर में मौजूद न होने के बावजूद भी मंदिर में दीप जलता रहता है। इसके पीछे के रहस्य को आज तक कोई जान नहीं पाया है।
विशाल आपदा के बाद भी नहीं हिली थी Kedarnath dham mandir की ईट
साल 2013 में मंदिर और उसके आसपास के क्षेत्र में आई विशाल त्रासदी के बाद पूरा क्षेत्र तहस नहस हो गया। आपदा के दौरान केदारनाथ धाम में मंदिर को छोड़ बाकी पूरा परिसर क्षतिग्रस्त हो गया था। लेकिन त्रासदी के दौरान मंदिर की एक ईंट भी नहीं हिली थी। इसके बाद से अब तक धाम में पुनर्निर्माण का काम चल रहा है।

400 सालों तक बर्फ में दबा था मंदिर
कहा जाता है कि 400 सालों तक यह मंदिर बर्फ में दबा रहा था और जब इसे बाहर निकाला गया तो यह पूरी तरह से सुरक्षित था। देहरादून के वाडिया इंस्टीट्यूट के हिमालयन जियोलोजिकल वैज्ञानिकों के शोध के अनुसार 13वीं से 17वीं सदी के बीच 400 सालों के लिए एक छोटा हिम युग आया था। इस युग में हिमालय का एक विशाल क्षेत्र बर्फ में लुप्त हो गया था। यह मंदिर भी इस क्षेत्र में शामिल था। वैज्ञानिकों का कहना है कि आज भी मंदिर के पत्थरों और दीवारों पर इसके साक्ष्य पाए जाते हैं।

कैसे करें केदारनाथ धाम की यात्रा
छोटा चार धाम यात्रा में चार मंदिरों की यात्रा कराई जाती है। जिसमें विशेष रूप से केदारनाथ मंदिर भी शामिल है। केदारनाथ मंदिर के अलावा अन्य तीन मंदिर बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री है। हर साल मंदिर के दर्शन करने की तिथि तय की जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार ओंकारेश्वर मंदिर के पुरोहितों द्वारा ये तिथि तय की जाती है। अक्षय तृतीया और महाशिवरात्रि के दिन पुरोहितों द्वारा केदारनाथ में स्थित स्वयंभू शिवलिंग की आराधना के लिए तिथि सुनिश्चित की जाती है।

कैसे पहुंचे Kedarnath dham mandir
अगर आप केदारनाथ धाम सड़क मार्ग से जा रहे हैं तो हरिद्वार और ऋषिकेश से आपको आसानी से सोनप्रयाग के लिए बस मिल जाएगी। सोनप्रयाग पहुंचने के बाद आप गौरीकुंड के लिए स्थानीय परिवहन ले सकते हैं। इसके बाद आपको 22 किमी का ट्रैक तय करना है।
अगर आप रेल मार्ग से केदारनाथ जा रहे हैं तो सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। जो लगभग 215 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्टेशन देश के अधिकतर महत्वपूर्ण रेल मार्ग से कनेक्ट होता है। ऋषिकेश से केदारनाथ के लिए टैक्सी, बस आदि आसानी से उपलब्ध हो जाती है।
अगर आप हवाई मार्ग से जा रहे हैं तो जॉली ग्रांट हवाई अड्डा केदारनाथ का निकटतम हवाई अड्डा है। जो लगभग 240 किलोमीटर की दूरी पर है। इस हवाई अड्डे तक पहुंच कर आप किराये पर बस या टैक्सी लेकर केदारनाथ जा सकते हैं। गौरीकुंड केदार घाटी का आखिरी पड़ाव है जहां तक कोई भी परिवहन वाहन जा सकता है।
गौरीकुंड से केदारनाथ पहुंचने के लिए आपको 22 किमी किलोमीटर की ट्रेकिंग करनी होगी। यदि आप ट्रैकिंग से बचना चाहते है तो आप घोडा खच्चर से यात्रा कर सकते हैं या दूसरा विकल्प यह है कि आप गुप्तकाशी/फाटा/ गौरीकुंड आदि से हेलीकॉप्टर से उड़ान भर सकते हैं।