देहरादून- भगत सिंह कोश्यारी ने जैसे ही कहा कि 2019 की सियासी पिच पर वे बैटिंग नहीं करेंगे तो सबके कान खड़े हो गए हैं आखिर भगत दा ने इतना बड़ा फैसला क्यों लिया ? अब कारण तलाशे जा रहे है कि, कहीं ऐसा तो नही या वैसा तो नही । कयासों के दौर के बीच माना जा रहा है कि, शायद भगद दा ‘खंडूड़ी जरूरी है’ के नारे से नाराज हैं । क्योंकि उन्होंने कहा भी”खंडूरी नहीं, भाजपा के लिए हर आदमी जरूरी है।”
या माना जा रहा है कि भगत दा आलाकमान पर दबाव बनाना चाह रहे हैं कि, 2017 के विधानसभा चुनाव में कमान उनके हाथ में रहे फिर वे जीतने के लिए मेहनत करेंगे ।
उनके पास सियासी जंग जीतने का तजुर्बा है 2007 के चुनाव में प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने भाजपा को सत्ता दिलाई थी, लेकिन आलाकमान ने सीएम अपनी मर्जी से बनाया था। इस बार वे ऐसा नही चाहते। ये भी एक वजह हो सकती है।
या फिर कहीं ऐसा तो नही कि उन्हे आभास हो गया हो कि नया आलाकमान उम्रदराजों को तरजीह नही देगा। पितृपुुरुषों की तरह उन्हें भी जबरन नेपथ्य में धकला जा सकता है।
अगर ऐसा है तो उससे बेहतर है कि खुद ही ऐलान कर दिया जाए कि,” मैने अपना सियासी बल्ला टांगने का फैसला ले लिया है।” ताकि कोई यू न कहे कि ‘बडे बे आबरू होकर निकले भाजपा के कूचे से हम।’ सच क्या है ये तो भगत दा ही जाने लेकिन सियासी फिजां मे तो यही कारण गिनाए जा रहे हैं।