कोरोना वायरस का कहर दुनिया भर में जारी है जिसने लोगों में दहशत फैला दी है। वहीं कोरोना वायरस के साथ कई मिथक भी फैल रहे हैं जिससे लोग और डरे हुए हैं और कई तरीके कोरोना से बचने के लिए अपना रहे हैं। आइये आपको बता दें कि आखिर कोरोना के कहर के बीच कौन कौन से मिथक हैं जो फैलाए जा रहे हैं और इनकी सच्चाई क्या है?
मिथक: गरमी का मौसम करोना वायरस को खत्म कर सकता है
सच: विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, अभी तक मिले साक्ष्य बताते हैं कि कोविड-19 वायरस सभी इलाकों में फैल सकता है. इसका गरमी या सर्दी से लेनादेना नहीं है.
मिथक: गरम पानी से नहाने से कोरोना वायरस की रोकथाम ..
सच: यह सरासर गलत है. गरम पानी से नहाना कोविड-19 से बचाव का रास्ता नहीं है. शरीर का तापमान करीब 36.5 डिग्री से 37 डिग्री सेंटीग्रेड रहता है. भले ही पानी या शॉवर का तापमान कितना भी हो. कोरोना से बचने का सबसे अच्छा तरीका बार-बार हाथों को धुलते रहना है.
मिथक: अपने शरीर पर एल्कोहल या क्लोरीन लगा लेने से कोरोना वायरस खत्म हो जाता है
सच: डब्ल्यूएचओ के अनुसार, शरीर पर एल्कोहल या क्लोरीन लगा लेने से वे वायरस नहीं मरेंगे जो पहले ही शरीर में प्रवेश कर चुके हैं. ऐसी चीजों के इस्तेमाल से कपड़ों और आंखों को जरुर नुकसान पहुंच सकता है।
मिथक: लहसुन खाने से कोरोना की रोकथाम में मदद मिलती है
सच: बेशक लहसुन में औषधीय गुण होते हैं. हालांकि, इस बात के कोई साक्ष्य नहीं हैं कि इसे खाने से कोरोना से बचा जा सकता है.
मिथक: संक्रमित जगहों से मिले पैकेट या लेटर सुरक्षित नहीं हैं
सच: ऐसे उत्पादों या पैकेटों से खतरे की गुंजाइश बहुत कम है. ये पैकेट कई दिनों और हफ्तों की यात्रा के बाद अलग-अलग तापमान से गुजरकर पहुंचते हैं. सतह पर कोरोना वायरस के इतने दिनों तक बने रहने की संभावना न के बराबर है.
मिथक: नोवल कोरोना वायरस केवल बुजुर्गों के लिए खतरनाक है
सच: हर उम्र के लोग नए कोरोना वायरस से संक्रमित हो सकते हैं. बुजुर्ग लोग और पहले से अस्थमा, डायबिटीज, हृदय रोग से पीड़ित लोगों को खतरा ज्यादा है.
मिथक: कोरोना की रोकथाम में एंटीबायटिक कारगर हैं
सच: वायरस के खिलाफ कोई एंटीबायोटिक काम नहीं करती है. इनका इस्तेमाल केवल बैक्टीरिया के खिलाफ हो सकता है.
मिथक: नमक के पानी से अपनी नाक को बार-बार साफ करने से कोरोना से बचा जा सकता है
सच: इसका अब तक कोई साक्ष्य नहीं मिला है.
मिथक: थर्मल स्कैनर से आसानी से कोरोना संक्रमित व्यक्ति का पता लगाया जा सकता है
सच: थर्मल स्कैनर बॉडी टेंपरेचर का पता कर केवल बुखार के बारे में बता सकता है. कोरोना संक्रमित व्यक्ति का इससे पता नहीं लगाया जा सकता है. कोरोना संक्रमित व्यक्ति को बुखार आने में कम से कम 2 से 10 दिन तक का समय लगता है.
मिथक: निमोनिया की वैक्सीन कोरोना में फायदेमंद है
सच: निमोनिया से बचाव के लिए दी जाने वाली वैक्सीन कोरोना से नहीं बचा सकती है. अभी तक कोरोना से बचाव के लिए कोई वैक्सीन नहीं बनी है.
मिथक: पालतू जानवरों से कोरोना फैल सकता है
सच: इस बात के अभी तक कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं कि पालतू जानवरों से कोरोना फैलता है. वैसे, इनके साथ संपर्क में आने पर साबुन से हाथ जरूर धुल लें.
मिथक: अल्ट्रावॉयलेट डिसइंफेक्टेंट लैंप से वायरस खत्म हो जाता है
सच: इसका कोरोना के खात्मे से कोई लेनादेना नहीं है. इससे तो हाथ या शरीर के अन्य हिस्सों की त्वचा के कीटाणु भी नहीं मरते हैं.
मिथक: कोविड-19 की वैक्सीन उपलब्ध है
सच : तो आपको बता दें कि अभी तक कोरोना वायरस की कोई वैक्सीन नहीं बनी है.
मिथक: बच्चों को कोरोना वायरस नहीं हो सकता है
सच: बच्चों को बड़ों जितना ही कोरोना वायरस संक्रमित कर सकता है.
मिथक: विटामिन सी सप्लीमेंट कोरोना से बचाते हैं
सच : अभी तक इस बात के कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं.
मिथक : अगर आप 10 सेकेंड तक अपनी सांस रोक सकते हैं तो आप स्वस्थ हैं
सच: यह टेक्नीक इस बात का पता लगाने में कारगर होती है कि किसी को फेंफड़ों को संक्रमण है या नहीं. इसका कोरोना से कोई लेना देना नहीं है.
मिथक: पानी पीने से कोरोना से बचा जा सकता है
सच: इस तरह के कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं हैं कि हर 15 मिनट में पानी पीने से कोरोना से बचा जा सकता है.
मिथक: गरम पानी का गरारा करने से कोरोना से बचाव किया जा सकता है
सच: इसका वायरल इनफेक्शन पर कोई असर नहीं पड़ता