देहरादून: हरिद्वार और देहरादून की सीमा पर चल रहे धर्मार्थ अस्पताल में अधर्म चल रहा था। कहने के लिए डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया गया है, लेकिन यहां के डॉक्टर जो कुछ कर रहे थे वह किसी हैवानियत से कम नहीं। अस्पताल में मिलीभगत से किडनी की खरीद-फरोख्त का धंधा चल रहा था। स्वास्थ्य विभाग की जांच में यहां गुर्दा ट्रासप्लांट के सारे संसाधन मौजूद मिले। जबकि अस्पताल इसके लिए अधिकृत ही नहीं है।
दो ही अस्पतालों के पास है लाइसेंस
यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि प्रदेश में गुर्दा प्रत्यारोपण का लाइसेंस मात्र दो ही अस्पताल के पास है। एक श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल और दूसरा हिमालयन हॉस्पिटल जौलीग्रांट।
किडनी ट्रांसप्लांट की पूरी प्रक्रिया की वीडियो रिकॉर्डिंग भी की जाती है। किडनी देने के समय डॉक्टरों का एक पैनल दानकर्ता से इस बात की पड़ताल करता है कि कहीं उससे अवैध तरीके से तो किडनी नहीं ली जा रही है या फिर किसी दवाब में उससे किडनी ली जा रही हो। इसके लिए चिकित्सकों के एक पैनल का गठन किया जाता है। उसके आधार पर ही अंतिम फैसला होता है।
गंगोत्री चैरिटेबल अस्पताल में किडनी रैकेट का भंडाफोड़ होने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने टीन सदस्य जांच टीम जांच के लिए अस्पताल भेजी। जिसमें नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. हरीश बसेरा, सर्जन डॉ. कुश ऐरन व एनेस्थेटिक डॉ. एसके वर्मा शामिल रहे। जिनकी जांच में इस बात की तस्दीक हुई है कि अस्पताल में लंबे वक्त से अवैध तरीके से गुर्दा प्रत्यारोपण किया जा रहा है।
अस्पतालों तक फैला ब्रोकरों का जाल
किडनी फेल होने वाले या किडनी की बीमारी से जूझ रहे मरीजों को नियमित रूप से डायलिसिस के लिए अस्पताल जाना पड़ता है। जहां ब्रोकरों ने अपना जाल फैलाया हुआ है। वह इस किडनी रैकेट में एजेंट के तौर पर काम करते हैं। वह मरीज अस्पताल, और सबसे महत्वपूर्ण डोनर के बीच की कड़ी हैं।
किडनी के लिए मुंहमांगी रकम
पुलिस सूत्रों के मुताबिक किडनी की रकम ग्राहकों की हैसियत पर तय होती है। व्यापारिक घराने से ताल्लुक रखने वाले और विदेशों में नौकरी करने वाले कई रोगी अपनी जान बचाने के लिए किडनी के लिए मुंहमांगी रकम देने को तैयार हो जाते हैं। पुलिस अब उन रोगियों से भी संपर्क साध रही है जिन्हें बीते कुछ वक्त में किडनी उपलब्ध कराने का भरोसा दिया गया है।
ये हैं अंग प्रत्यारोपण के नियम
1.अंग प्रत्यारोपण के लिए अस्पताल में दो तरह की कमेटियां होती हैं।
2.नजदीकी रिश्तेदारों से अंगदान के लिए इंटरनल असेस्मेंट कमेटी होती है, जिसमें डॉक्टरों के अलावा सामाजिक संगठन के कार्यकर्ता भी शामिल होते हैं।
3.दूर के रिश्तेदारों या परिचितों से अंगदान प्रत्यारोपण के लिए बाहरी कमेटी होती है। इस कमेटी में सरकार के प्रतिनिधि भी शामिल होते हैं।
4.अंगदान प्रक्रिया के लिए लीगल दस्तावेजों के अलावा नोटरी से शपथ पत्र भी देना पड़ता है।
5.अंगदान प्रत्यारोपण में अस्पताल की कमेटी मरीज और डोनर का सत्यापन करने के बाद ट्रांसप्लांट की स्वीकृति देती है।
- कमेटी की स्वीकृति के बिना डॅाक्टर प्रत्यारोपण नहीं कर सकते हैं।
तीन से दस साल सजा, 30 लाख से 1 करोड़ जुर्माना
अंगदान प्रत्यारोपण के लिए मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम 1994 बना हुआ है। वर्ष 2014 में इस अधिनियम में संशोधन के जरिए नई अधिसूचना जारी की गई। इस कानून के तहत अंगों की खरीद-फरोख्त करना गैरकानूनी धंधा है। इस नियम की अवहेलना व अंगों की खरीद-फरोख्त करने पर तीन साल से लेकर 10 साल तक की सजा और 30 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये तक जुर्माने का प्रावधान किया गया है।