डेस्क – उत्तराखंड में साल 2013 के दौरान जब चार यात्रा उफान पर थी 13 जून की रात इतने बादल बरसे कि सारा देश सिहर गया। उस आपदा के निशान अब भी राहों में मिल रहे हैं। केदार आपदा में कितने श्रद्धालु असमय काल के ग्रास बनें होंगे अब तक कोई पुख्ता आंकड़ा उपलब्ध नही है।
कई नरकंकाल केदार यात्रा के ऐसे रास्तों पर मिल रहे हैं जो साबित करते हैं कि वो ऐसे श्रद्धालु रहे होंगे जिन्होंने कुदरत के कहर से खुद को तो बचा तो लिया था लेकिन भूख प्यास ने उनका दम छीन लिया।
दरअसल तत्कालीन विजय बहुगुणा सरकार को खबर ही नहीं हुई। सरकार के मुखिया दिल्ली दौरे में व्यस्त रहे लिहाजा दो दिन बाद राहत बचाव का काम शुरू हुआ। इस बीच सैकड़ों लोगों ने दम तोड़ दिया।
अब कोई भी उस केदार आपदा को याद नहीं करना चाहता लेकिन चार साल बाद भी केदारघाटी में नरकंकालों के मिलने का सिलसिला थम नहीं रहा है। हालात ये हैं कि जरा सा मौसम बिगड़ता है तो केदार आपदा की याद खुद-ब-खुद आ जाती है।
ऐसे में शुक्रवार को बदरीनाथ मार्ग पर विष्णु प्रयाग के पास हाथी पर्वत का हिस्सा दरक गया और 27 घंटे यात्रा रूकी रही। तो उधर केदारनाथ के विधायक मनोज रावत ने अपनी फेसबुक वॉल को अपडेट करते हुए बेहद संजीदा बयान दावे के साथ चस्पा कर दिया।
रावत ने कहा है कि 2013 की केदार आपदा को राज्य योजित हत्या करार दिया जाना चाहिए। मनोज ने केदार आपदा की तुलना नरसंहार से करते हुए इसमे सरकार की गलती बताया है।